नितिन ओसवाल
माँ की छाँह मिले तो जग का
हर आतप भी शीतल है,
जीवन राह में चलते थक गए,
विश्राम माँ का आँचल है,
बच्चों के हर दुःख को जिसने,
अपना समझ स्वीकार किया,
अपने हिस्से की हर ख़ुशी को,
बच्चों पर ही वार दिया,
बुरी नज़र से बचाये हरदम,
वो नयनों का काजल है,
विश्राम माँ..
पत्थर तोड़े कड़ी धूप में,
कटु अनुभव भी सहन किए,
भूखा सोए न बेटा कभी भी,
जल से क्षुधावेद शमन किए,
तन मैला हो कितना भी माँ,
मन से सबसे प्रांजल है,
विश्राम माँ...
अपने तन का वस्त्र बनाकर जिसने
लाल को आराम दिया,
बड़े होने पर उसी बच्चे ने,
वृद्धाश्रम का इनाम दिया,
वहाँ से भी देती हैं दुआएँ,
माँ सचमुच में पागल है,
विश्राम माँ...
चिंता स्वयं की की कभी ना,
बच्चों की चिंता में बीमार हुई,
अपना लुटाया सर्वस्व उसने,
चाहे तनमन से लाचार हुई
स्नेहजल से जो सींचे हरपल,
माँ ममता का बादल है,
विश्राम माँ...
कहती है दुनिया ये सारी,
मनु तन पुण्य से उपजा है,
कोख बिना ये असंभव था,
प्रभु पर भी माँ का क़र्ज़ा है,
शब्द नहीं जो गुण गायें,
माँ से न कोई निर्मल है,
विश्राम माँ का आँचल है।।
-0- नागपुर (महाराष्ट्र)
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 07 जून 2022 को साझा की गयी है....
जवाब देंहटाएंपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
भावपूर्ण रचना ।
जवाब देंहटाएंमाँ तो बस माँ होती है, उसके जैसा दूसरा कोई नहीं, अति सुंदर सृजन!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भावनाओं में बहती कविता
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