डॉ. पीयूष गोयल
चलो कुछ लिखें
प्रकृति की बातें .....
मदमाती सी डालियाँ
भीनी-भीनी खुशबू
बहती- सरसराती हवा
ऊँचे-ऊँचे पेड़ों पर
घरौंदों में बैठे हुए
पक्षियों के चहचहाने की यादें
चलो कुछ लिखें ....
करें प्रकृति से बातें
पेड़ों से झाँकते प्रकाश से
छनती हुई रौशनी
नंगे पांव को सहलाती
ओस की बूँदों से
हल्की गीली धरती
और मिलती हुई कहीं ...
फूलों की मखमली बिसाते
साँसों को बढ़ाती खुशबू
आसमान से बातें करती
पेड़ों की बढँती शाखाएँ
और आगे बढ़ने का
अंदेशा देती बहती हवाएँ
लुका- छुपी खेलती
सतरंगी पक्षियों की कतारें
और हँसते हुए
मौसम में
हाथों को फैलाए हुए
अपने मन की बातें
चलो कुछ लिखें
चढ़ते दिनों की बातें
ऊँची अट्टालिकाओं के आगे
बौने होते हुए वृक्ष
वीरान सड़कों पर ...
ठूँठ से दिखते हुए पेड़
बिजली की तारों पर
सुनसान होती हुई चहचहाहट
बढ़ती गर्मी, उजड़ते घंरौंदे
और चहचहाते पक्षियों की जगह
सिर्फ शोर और आवाजें
आज भी खो जाता है, मन
उन पुरानी बातों में
पर कहने को कुछ भी नहीं
क्योंकि बिकते हैं, फूल
अब बाजारों में
खुशबुओं का मंजर सिमट- सा गया
और हंसते हैं, हम बेगानों में
क्योंकि - प्रकृति का साथ
जो अब हमसे है छूट गया
-0- जैव प्रौद्योगिकी विभाग,भारत
-0-
वाह वाह , बहुत ही सुन्दर रचना, हार्दिक शुभकामनाएँ ।
जवाब देंहटाएंअति सुंदर भावाभिव्यक्ति.... 🌹🙏
जवाब देंहटाएंExcellent Mamaji 🎉
जवाब देंहटाएंBahut hi sundar kavita
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