डॉ.कविता भट्ट 'शैलपुत्री'
वर्त्तमान में वैज्ञानिक किसी भी देश की दिशा और दशा निर्धारित करते हैं, इसलिए उनको अधिक एकाग्रता और मानसिक प्रतिबद्धता की आवश्यकता होती है; अतः वैज्ञानिकों के लिए प्रतिदिन की
जीवन शैली में योगाभ्यास को अपनाना आवश्यक है। ऐसा करने पर वे तनाव और कार्य की अधिकता के कारण होने वाली मानसिक थकान से मुक्ति पा सकते हैं तथा देश को उपयोगी अनुसंधानों - शोधों के द्वारा विश्व के मानचित्र पर विश्व गुरु के रूप में प्रतिष्ठित कर सकते हैं।
यह बात सुविख्यात लेखिका तथा योग विशेषज्ञ शैलपुत्री फाउंडेशन की मैनेजिंग ट्रस्टी डॉ. कविता भट्ट ‘शैलपुत्री' ने विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अंतर्गत डीएसटी, डीबीटी तथा डीएसआईआर के संयुक्त तत्त्वावधान में दिनांक 16 मई 2022 को आयोजित योग के व्याख्यान और प्रदर्शन कार्यक्रम में कही।
उन्होंने आगे कहा कि विश्व के सर्वाधिक लोकप्रिय नेता भारत के यशस्वी प्रधानमंत्री माननीय श्री नरेंद्र मोदी जी के उत्कृष्ट मार्गदर्शन में आयुष मंत्रालय के दिशानिर्देश में भारतवर्ष की आजादी के अमृत महोत्सव के अंतर्गत अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस 21 जून, 2022 से पूर्व 100 दिवसीय काउंटडाउन योग कार्यक्रम का आयोजन भारतवर्ष के विविध विभागों और संस्थानों द्वारा किया जा रहा है। इसके लिए केंद्रीय नेतृत्व और भारत सरकार साधुवाद की पात्र हैं।
इस अवसर पर डीबीटी, भारत सरकार, नई दिल्ली के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. पीयूष गोयल ने सत्र में ऑनलाइन उपस्थित डॉ.राजेश गोखले, सेक्रेटरी डीबीटी, नई दिल्ली, श्री चैतन्य मूर्ति, ज्वाइंट सेक्रेटरी डीबीटी, नई दिल्ली तथा बड़ी संख्या में प्रतिभाग कर रहे अन्य सभी वरिष्ठ वैज्ञानिकों तथा फेलोज का स्वागत किया।
डॉक्टर जे. पी. मीणा, डिप्टी सेक्रेटरी डीबीटी, भारत सरकार, नई दिल्ली ने आमंत्रित वक्ता डॉ. कविता भट्ट 'शैलपुत्री' का परिचय प्रस्तुत करते हुए उन्हें सत्र में वक्तव्य हेतु आमंत्रित किया।
डॉ कविता भट्ट ने अपने वक्तव्य में आगे यह भी कहा कि यों तो योगाभ्यास जन - जन के स्वास्थ्य एवं समग्र कल्याण के लिए आवश्यक है; किंतु वैज्ञानिकों के लिए यह अत्यंत महत्त्वपूर्ण इसलिए हो जाता है; क्योंकि देश की दशा और दिशा का निर्धारण वैज्ञानिक अनुसंधान - शोधों पर केंद्रित होता है। उन्होंने मनोशारीरिक स्वास्थ्य के लिए षट्कर्म के अंतर्गत आने वाले त्राटककर्म के साथ ही शरीर संवर्धनात्मक, ध्यानात्मक तथा शिथिलीकरण आसनों, प्राणायाम और ध्यान की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि योग की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि तथा मूल ग्रंथों का अध्ययन आधुनिक परिप्रेक्ष्य में अत्यंत आवश्यक है। ताकि योग की तथ्यपरकता और व्यवहारिकता दोनों को एक साथ सुनियोजित ढंग से सभी के लिए उपयोगी बनाया जा सके। इस अवसर पर डॉ.कविता भट्ट के निर्देशन में योग विशेषज्ञ रेखा ने आसन और त्राटक कर्म का विधिवत् प्रदर्शन भी किया। कार्यक्रम में डीबीटी, डीएसटी तथा डीएसआईआर के विभिन्न वरिष्ठ सलाहकार, वरिष्ठ वैज्ञानिक तथा फेलो तथा अन्य सभी कर्मचारी बड़ी संख्या में
उपस्थित रहे और सभी ने योगाभ्यास भी किया।
-0-
यह समाचार निम्नलिखित पोर्टल पर भी क्लिक करके सकते हैं-
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें