दोहे (गढ़वळि माँ )
भगत सिंह राणा ' हिमाद
'
ए ग्याइ जून धार मा , रुम्क बक्त ह्वे ग्याइ l
औ लछिमा घर बौड़ि की , बाळु भुखे
रै ग्याइ ll1
मनस्वाग की डोर
भै , राति बणों मा
ह्वेनि l
गौं की ब्येटी ब्वारि
सब , घर बौड़ी ए गेनि ll2
व्याळ फजल कनु घास
व्हे ,घास
मा डुबीं रौंदि l
खाणों कू त्वे बक्त
नी , द्वी
रोटि कख बी खांदि ll3
दिन छुंयाळों
का दगड़ि , धार
मा बैठिं राँदि l
रुम्क पड़ी तब बोण मा , घसियारी
ह्वे जाँदि ll4
द्वी ढांगी छिन गोरु
का , तों
पिछने दिन काटि l
दै दूध त कुछ पाइ नी , लोगोंन हि
सब बाँटि ll5
बाळा दगड़ी रैग्यु मी , काम धाणि कख
जाण l
दिनकटला कनुकेरिकी,ब्याळ काटि
क्या खाण ll6
बिते बाळापन खैरि मा ,
ज्वनि छुँयुँ मा बीति l
बूढ़ेण कनु क्वे
काटली , जाणी जा यूँ रीति ll7
त्यारे खातिर
लट्यळी , ह्वेगग्युँ
मी लाचार l
पुंगड़ि बाँझी
ह्वे ग्ययी , उखड़ीगे घरबार ll8
दिन बोड़िकि ओला कभी ,कैमा दुख
बिसराण l
दगड़ छुँयाळूँ छोड़िदी,काम धाणि लगि जाण ll9
सुण लट्याळी बींगि
जा , सरपट दौड़ी एज l
डुबणी मवसी
धार मा , अब त पार
लगेज ll10
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शानदार सृजन
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर राणा जी सादर प्रणाम
जवाब देंहटाएंत्यार बगैर लठ्यळि...
जवाब देंहटाएंभला दोहा👏👏👏👏👏