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मंगलवार, 1 जून 2021

246-दोहे (गढ़वळि माँ )

 

दोहे   (गढ़वळि माँ )

भगत सिंह राणा ' हिमाद '

 


  ग्याइ जून  धार मा , रुम्क  बक्त  ह्वे  ग्याइ l

औ लछिमा घर बौड़ि की , बाळु भुखे रै ग्याइ ll1

 

मनस्वाग  की डोर  भै , राति  बणों मा  ह्वेनि

गौं की ब्येटी  ब्वारि सब , घर बौड़ी    गेनि ll2

 

व्याळ फजल कनु घास व्हे ,घास मा डुबीं रौंदि

खाणों कू त्वे बक्त नी , द्वी रोटि कख बी खांदि ll3

 

दिन  छुंयाळों  का  दगड़ि , धार  मा बैठिं राँदि

रुम्क पड़ी तब बोण मा , घसियारी   ह्वे जाँदि ll4

 

द्वी ढांगी छिन गोरु का , तों पिछने दिन काटि

दै दूध त कुछ पाइ नी , लोगोंन हि सब बाँटि ll5

 

बाळा दगड़ी रैग्यु मी , काम धाणि कख जाण

दिनकटला कनुकेरिकी,ब्याळ काटि क्या खाण ll6

 

बिते बाळापन खैरि  मा , ज्वनि छुँयुँ मा बीति

बूढ़ेण कनु  क्वे  काटली जाणी जा यूँ रीति ll7 

 

त्यारे  खातिर  लट्यळी ह्वेगग्युँ   मी  लाचार

पुंगड़ि  बाँझी  ह्वे  ग्ययी उखड़ीगे    घरबार ll8

 

दिन बोड़िकि ओला कभी ,कैमा दुख बिसराण

दगड़ छुँयाळूँ  छोड़िदी,काम धाणि लगि जाण ll9

 

सुण लट्याळी  बींगि जा , सरपट  दौड़ी  एज

डुबणी  मवसी  धार मा , अब  त पार  लगेज ll10

 

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