सोमवार, 10 मई 2021

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विनीता तिवारी  , (वर्ज़िनिया )

 1-नारी

 


नारी तुमको चलना है
 

दीपक बाती बन जलना है 

 

आएँगे रोज़ पड़ाव न

जब धूमिल होंगे मूल्य तेरे

एक स्रोत बहेगा पर्वत से

पूजेगी दुनिया अंतर से 

 

अपना मैला धुलवाएँगे

और कीचड़ 

भर- भर लाएँगे 

तू भर मुस्कान समेट रही

सुख वैभव अपना भेंट रही

 

पर ये क्या हुआ

आज नियति को

कर्मभूमि

जननी धरती को

सामर्थ्यवान् 

पूजिता सती को

किसने किया

प्रपंच धरा से

किसने खेली गंदी चाल?

जिस वैभव को 

लूट रहे थे 

बनकर प्रेमी

बनकर लाल

आज उसी सौन्दर्य धरा का

कर डाला यौवन बेहाल!

 

मूक समय की देखो चाल

खड़ा अचम्भित और निढाल!

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2-कर्मों के फल

 

अपने अपने कर्मों के फल

लिए घूमते 

हर दिन हर पल

 

कुछ फल जिनकी

चाह नहीं थी 

कर्मों की भी थाह नहीं थी

फिर भी साथ खड़े थे ऐसे 

बिन ब्याहे दम्पति हों जैसे 

 

एक कर्म से 

जुड़ा हुआ जब

कई और कर्मों का नाता

कैसे कोई बूझे फिर 

अगले पिछले कर्मों की गाथा 

 

निराकार आकार 

के पीछे भाव जगत् का

तुम ही तो हो

भाव तुम्हारे, कर्म तुम्हारे 

फिर फल कैसे

हुए हमारे?

 

सोच विचार करें जन सारे

कुछ ना हाथ लगे पर प्यारे!

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3- ज़िंदगी

 

बीत गए दिन साल महीने 

बीते मौसम घड़ियाँ 

कभी ज़िंदगी गोभी आलू

कभी कुरकुरी बड़ियाँ

 

साँझ सवेरे रहे पकाऊँ 

ऊब रही दुपहरिया 

साफ़ सफ़ाई

चौंक रसोई 

रोज़ वही दिनचरिया 

चलो पिरोएँ सुधियों में

सुंदर भविष्य की लड़ियाँ

 

कभी ज़िंदगी गोभी आलू

कभी कुरकुरी बड़ियाँ

 

नहीं ज़रूरी रहे समर्पित 

घर आँगन परिवारों को 

कन्या भी जन्मी है लेकर 

सपनों और अधिकारों को

देखो, कहीं न उलझें 

जीवन के 

लक्ष्यों की कड़ियाँ 

 

कभी ज़िंदगी गोभी आलू

कभी कुरकुरी बड़ियाँ

-0-


9 टिप्‍पणियां:

  1. देखो, कहीं न उलझें

    जीवन के

    लक्ष्यों की कड़ियाँ

    यह भाव बहुत अच्छा लगा।

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  2. विनीता जी आपकी कविताएँ बड़ी ही मार्मिक, हृदय स्पर्शी हैं | आपने नारी के जीवन की जो व्याख्या की है बहुत ही सटीक है | तीनों रचनाए बहुत ही सुंदर और भावपूर्ण है |बहुत सारी बधाई के -श्याम हिन्दी चेतना

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  3. नारी सम्बंधित तीनों कविताओं के बहुत सुंदर भाव। बधाई आपको।

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  4. विनीता जी बहुत सुंदर रचनाएँ।बधाई आपको।

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  5. नारी विमर्श की तीनों कविताएँ बहुत सुन्दर । बधाई स्वीकारें। ।

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  6. सुन्दर रचनाओं के लिए बहुत बधाई विनीता जी

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