शनिवार, 23 मार्च 2019

ढोल की पोल (बलिदान दिवस विशेष)

डॉ. कविता भट्ट  'शैलपुत्री' 
 (जो युवा शिक्षा के मंदिरों में देशविरोधी नारे लगाते हैं उनको आईना दिखाती रचना देशहित में )

बेला आजन्म आजादों की साहब!
खंडित प्रतिमानों के मोल न पूछो
शेखर-चन्द्र रखे आजादी के युग वे     
उनके कैसे गूँजे थे वे बोल न पूछो 

खुली हवा में साँस ली जिन्होंने पहली    
वे अब कहते हैं; ये सब झोल न पूछो
छत पर रखते गमले सुंदर फूलों वाले 
नींव के पत्थर कितने अनमोल न पूछो

राष्ट्र-भावना दम भर तो दम भर ले 
संभावना के दाम और खोल न पूछो
लोकतंत्र- कर्त्तव्य स्वाहा अधिकारों में

अब इस बजते ढोल की पोल न पूछो

11 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर रचना अंतिम पंक्तियों में करारी चोट व्यवस्था पर ,अधिकारों में देश और कर्तव्य भूल गए, खास कर शिक्षित लोग बधाई डॉ कविता भट्ट जी को

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  2. बाबूराम जी आपको हार्दिक धन्यवाद।

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  3. बहुत सुंदर रचना।बधाई कविता जी

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  4. सुंदर कविता! काश! नासमझ कभी ये बात समझ पाते...
    हार्दिक बधाई कविता जी!

    ~सादर
    अनिता ललित

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