डॉ. कविता भट्ट 'शैलपुत्री'
(जो युवा शिक्षा के मंदिरों में देशविरोधी नारे लगाते हैं उनको आईना दिखाती रचना देशहित में )
बेला – आजन्म आजादों की साहब!
खंडित प्रतिमानों के मोल न पूछो
शेखर-चन्द्र रखे आजादी के युग वे
उनके कैसे गूँजे थे वे बोल न पूछो
खुली हवा में साँस ली जिन्होंने पहली
वे अब कहते हैं; ये सब झोल न पूछो
छत पर रखते गमले सुंदर फूलों वाले
नींव के पत्थर कितने अनमोल न पूछो
राष्ट्र-भावना दम भर तो दम भर ले
संभावना के दाम और खोल न पूछो
लोकतंत्र- कर्त्तव्य स्वाहा अधिकारों में
अब इस बजते ढोल की पोल न पूछो
Wah Didi
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना अंतिम पंक्तियों में करारी चोट व्यवस्था पर ,अधिकारों में देश और कर्तव्य भूल गए, खास कर शिक्षित लोग बधाई डॉ कविता भट्ट जी को
जवाब देंहटाएंबाबूराम जी आपको हार्दिक धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना।बधाई कविता जी
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार महोदया। सादर नमन।
हटाएंबहुत खूब...
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार महोदय। सादर प्रणाम।
हटाएंBahut khub likha aapne bahut bahut badhai
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार महोदया। आपको प्रणाम।
हटाएंसुंदर कविता! काश! नासमझ कभी ये बात समझ पाते...
जवाब देंहटाएंहार्दिक बधाई कविता जी!
~सादर
अनिता ललित
Wow bahut sunder rachana
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