बुधवार, 18 जुलाई 2018

प्रेम-अँजुरी-66

डॉ.कविता भट्ट

नित वन्दन
मैं करती रही हूँ
तेरा ही प्रिय
मंदिर की पूजा -सा
मेरा प्रेम है
दीपशिखा -सी जली
किया प्रकाश
तेरे घर- आँगन,
रही पालती
मन में यह भ्रम
मंदिर- सा ही
कभी न कभी तुम
मेरे देवता
प्रसाद में दोगे ही
प्रेम-अँजुरी
किन्तु यह क्या  मिला !
तुम सदैव
सशंकित, क्रुद्ध ही
और रहते
उद्धत उपेक्षा को
नहीं जानती
तप जिससे होओ 
तुम प्रसन्न 
जबकि मैं तो प्रिय
हूँ प्रेम-तपस्विनी!

11 टिप्‍पणियां:

  1. नारी के अकुंठ प्रेम और आत्मा मंथन की गहन अनुभूति को आकार देता चोका ! उत्तम सृजन

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  2. कविता भट जी की भक्ति भावना से गर्भित कविता पढकर सदा की तरह मन को शांति मिली | आज का दिन इस भक्ति भावना के साथ प्रारम्भ करता हूँ |ईश्वर तुम्न्हारी काव्य साधना मीरा की तरह साकार हो |यही मेरी मनोकामना है | श्याम त्रिपाठी -हिन्दी चेतना

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  3. प्रेम तपस्विनी की प्रेम पूजा भाव विभोर करने वाली है ।बहुत सुन्दर लिखा चोका कविता जी।

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  4. बहुत सुन्दर सृजन कविता जी. ... बधाई आपको !

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  5. सुन्दर भावधारा , बहुत बधाई कविता जी !

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  6. सुन्दर और भावपूर्ण चोका, बधाई कविता जी.

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  7. आप सभी को सादर नमन। हार्दिक आभार।

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  8. ये प्रेम भी कितना अनूठा होता है, अपने प्रिय के लिए कुछ भी करने को आतुर...| इस भावपूर्ण रचना के लिए बहुत बधाई...|

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