डॉ.कविता भट्ट
नित वन्दन
मैं करती रही हूँ
तेरा ही प्रिय
मंदिर की पूजा -सा
मेरा प्रेम है
दीपशिखा -सी जली
तेरे घर- आँगन,
रही पालती
मन में यह भ्रम
मंदिर- सा ही
कभी न कभी तुम
मेरे देवता
प्रसाद में दोगे ही
प्रेम-अँजुरी
किन्तु यह क्या मिला !
तुम सदैव
सशंकित, क्रुद्ध ही
और रहते
उद्धत उपेक्षा को
नहीं जानती
तप जिससे होओ
तुम प्रसन्न
जबकि मैं तो प्रिय
हूँ प्रेम-तपस्विनी!
नारी के अकुंठ प्रेम और आत्मा मंथन की गहन अनुभूति को आकार देता चोका ! उत्तम सृजन
जवाब देंहटाएंप्रेम तपस्विनी - वाह !
जवाब देंहटाएंकविता भट जी की भक्ति भावना से गर्भित कविता पढकर सदा की तरह मन को शांति मिली | आज का दिन इस भक्ति भावना के साथ प्रारम्भ करता हूँ |ईश्वर तुम्न्हारी काव्य साधना मीरा की तरह साकार हो |यही मेरी मनोकामना है | श्याम त्रिपाठी -हिन्दी चेतना
जवाब देंहटाएंप्रेम तपस्विनी की प्रेम पूजा भाव विभोर करने वाली है ।बहुत सुन्दर लिखा चोका कविता जी।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सृजन कविता जी. ... बधाई आपको !
जवाब देंहटाएंआप सभी को हार्दिक धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंBhaut gahan abhivykti is choka men kavita ji bahut bahut badhai...
जवाब देंहटाएंसुन्दर भावधारा , बहुत बधाई कविता जी !
जवाब देंहटाएंसुन्दर और भावपूर्ण चोका, बधाई कविता जी.
जवाब देंहटाएंआप सभी को सादर नमन। हार्दिक आभार।
जवाब देंहटाएंये प्रेम भी कितना अनूठा होता है, अपने प्रिय के लिए कुछ भी करने को आतुर...| इस भावपूर्ण रचना के लिए बहुत बधाई...|
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