मेरी
माँ ने मुझे कई बार बताया कि मेरा जन्म हमारे मिट्टी पत्थर वाले पहाड़ी घर में हुआ।
मेरी माँ गानों की बहुत शौकीन हैं और उन दिनों शहर नगर गाँव -गाँव रेडियो ही मनोरंजन का सर्वसुलभ साधन था। मेरे जन्म के समय रात को
आकाशवाणी विविध भारती पर कार्यक्रम छायागीत चल रहा था, गीत
बज रहा था , 'शोखियों में घोला जाए , फूलों का शबाब ....' चित्रपट था प्रेम पुजारी और गीतकार सबके प्रिय ‘नीरज’, वर्ष 1979 बसंत का मौसम ..प्रेम पुजारी 1970 में आई
थी, लेकिन इस फ़िल्म के गीत हवाओं में गुंजायमान थे और
सदियों तक रहेंगे। अनेक अन्य फिल्मों के लिए भी उनकी लेखनी ने विविध रंग बिखेरे। 'मेरा नाम जोकर' फ़िल्म का मुक्त छन्द में लिखा गीत-‘ऐ भाई
जरा देख के चलो’ भी बहुत चर्चित हुआ और जनसाधारण की
जुबान पर भी चढ़ा।
‘प्यार अगर न थामता पथ में , उँगली इस बीमार उमर की
हर
पीड़ा वेश्या बन जाती , हर
आँसू आवारा होता’ जैसे गीतों के रंग ही अनोखे हैं। कौन कहता है कि नीरज चले गए, उनके तराने हवाओं को हमेशा ताज़गी देते रहेंगे। नवांकुरों के प्रति इतना
स्नेह था उनके मन में कि 1927 से निरंतर प्रकाशित
हिंदी की सबसे पुरानी पत्रिका जिसका आरंभ गांधी जी ने किया था, उसमें पिछले वर्ष मेरा भारतीय दर्शन पर केंद्रित आलेख पढकर उन्होंने मुझे
कॉल किया, मेरे आलेख की प्रशंसा की और आशीर्वाद दिया, बोले कि लिखना कभी मत छोड़ना। साहित्य ऋचा पत्रिका के कवर पर उनके चित्र के
साथ मेरा चित्र और मेरी रचनाएँ भी प्रकाशित हुई थी पिछले वर्ष। उनका चित्र और दो पंक्तियाँ
मैं ने अपने अध्ययन कक्ष में दो वर्ष पूर्व लगाया था, जो
अभी भी जस का तस है। नीरज आप अंतिम साँस तक गुनगुनाये जाते रहोगे। वस्तुतः नीरज एक
युग का नाम है- अविस्मृत !
स्मृति
स्वरूप उनका एक गीत यहाँ दे रही हूँ-
-0-
कारवाँ गुज़र गया
गोपालदास नीरज
स्वप्न झरे फूल से,
मीत चुभे शूल से,
लुट गए सिंगार सभी बाग के बबूल से,
और हम खड़े-खड़े बहार देखते रहे।
कारवाँ गुज़र गया, गुबार देखते रहे!
मीत चुभे शूल से,
लुट गए सिंगार सभी बाग के बबूल से,
और हम खड़े-खड़े बहार देखते रहे।
कारवाँ गुज़र गया, गुबार देखते रहे!
नींद भी खुली न थी कि हाय धूप ढल गई,
पाँव जब तलक उठें कि ज़िन्दगी फिसल गई,
पात-पात झर गए कि शाख़-शाख़ जल गई,
चाह तो निकल सकी न, पर उमर निकल गई,
गीत अश्क बन गए,
छंद हो दफन गए,
साथ के सभी दिए धुआँ-धुआँ पहन गए,
और हम झुके-झुके,
मोड़ पर रुके-रुके,
उम्र के चढ़ाव का उतार देखते रहे।
कारवाँ गुज़र गया, गुबार देखते रहे।
पाँव जब तलक उठें कि ज़िन्दगी फिसल गई,
पात-पात झर गए कि शाख़-शाख़ जल गई,
चाह तो निकल सकी न, पर उमर निकल गई,
गीत अश्क बन गए,
छंद हो दफन गए,
साथ के सभी दिए धुआँ-धुआँ पहन गए,
और हम झुके-झुके,
मोड़ पर रुके-रुके,
उम्र के चढ़ाव का उतार देखते रहे।
कारवाँ गुज़र गया, गुबार देखते रहे।
क्या शबाब था कि फूल-फूल प्यार कर उठा,
क्या सुरूप था कि देख आइना सिहर उठा,
इस तरफ़ ज़मीन और आसमाँ उधर उठा
थाम कर जिगर उठा कि जो मिला नज़र उठा,
एक दिन मगर यहाँ,
ऐसी कुछ हवा चली,
लुट गई कली-कली कि घुट गई गली-गली,
और हम लुटे-लुटे,
वक़्त से पिटे-पिटे,
साँस की शराब का खुमार देखते रहे।
कारवाँ गुजर गया, गुबार देखते रहे।
क्या सुरूप था कि देख आइना सिहर उठा,
इस तरफ़ ज़मीन और आसमाँ उधर उठा
थाम कर जिगर उठा कि जो मिला नज़र उठा,
एक दिन मगर यहाँ,
ऐसी कुछ हवा चली,
लुट गई कली-कली कि घुट गई गली-गली,
और हम लुटे-लुटे,
वक़्त से पिटे-पिटे,
साँस की शराब का खुमार देखते रहे।
कारवाँ गुजर गया, गुबार देखते रहे।
हाथ थे मिले कि जुल्फ चाँद की सँवार दूँ,
होंठ थे खुले कि हर बहार को पुकार दूँ,
दर्द था दिया गया कि हर दुखी को प्यार दूँ,
और साँस यों कि स्वर्ग भूमि पर उतार दूँ,
हो सका न कुछ मगर,
शाम बन गई सहर,
वह उठी लहर कि दह गए किले बिखर-बिखर,
और हम डरे-डरे,
नीर नयन में भरे,
ओढ़कर कफ़न, पड़े मज़ार देखते रहे।
कारवाँ गुज़र गया, गुबार देखते रहे!
होंठ थे खुले कि हर बहार को पुकार दूँ,
दर्द था दिया गया कि हर दुखी को प्यार दूँ,
और साँस यों कि स्वर्ग भूमि पर उतार दूँ,
हो सका न कुछ मगर,
शाम बन गई सहर,
वह उठी लहर कि दह गए किले बिखर-बिखर,
और हम डरे-डरे,
नीर नयन में भरे,
ओढ़कर कफ़न, पड़े मज़ार देखते रहे।
कारवाँ गुज़र गया, गुबार देखते रहे!
माँग भर चली कि एक, जब नई-नई किरन,
ढोलकें धुमुक उठीं, ठुमुक उठे चरन-चरन,
शोर मच गया कि लो चली दुल्हन, चली दुल्हन,
गाँव सब उमड़ पड़ा, बहक उठे नयन-नयन,
पर तभी ज़हर भरी,
गाज एक वह गिरी,
पोंछ गया सिंदूर तार-तार हुईं चूनरी,
और हम अजान-से,
दूर के मकान से,
पालकी लिए हुए कहार देखते रहे।
कारवाँ गुज़र गया, गुबार देखते रहे।
ढोलकें धुमुक उठीं, ठुमुक उठे चरन-चरन,
शोर मच गया कि लो चली दुल्हन, चली दुल्हन,
गाँव सब उमड़ पड़ा, बहक उठे नयन-नयन,
पर तभी ज़हर भरी,
गाज एक वह गिरी,
पोंछ गया सिंदूर तार-तार हुईं चूनरी,
और हम अजान-से,
दूर के मकान से,
पालकी लिए हुए कहार देखते रहे।
कारवाँ गुज़र गया, गुबार देखते रहे।
-0-
नमन हमारे प्रिय कवि और गीतकार को।
जवाब देंहटाएंएक महान् काव्यात्मा को हार्दिक श्रद्धाञ्जलि!!!
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंनमन और हार्दिक श्रद्धांजलि उन महान कवि को...
जवाब देंहटाएंअमर गीतकार को सादर श्रद्धांजलि !
जवाब देंहटाएंविधाता लूट लिया संसार | आज साहित्य जगत में हो गया अन्धकार || नीरज एक महान गीतकार ,कलाकार, और मंच के मजे हुए कवि थे | मैं बड़ा भाग्यशाली हूँ कि नीरज जी १९८२ मेरे निवास स्थान हिन्दी साहित्य सभाके स्थापक एन विश्व भारती सप्ताहिक मासिक के प्रकाशक श्री रघुबीर सिंह,श्री नीरज,प्रभा ठाकुर व् व्लिटज़ के सम्पादक के साथ पधारे थे | वह कुछ अस्वस्थ होते हुए भी अपनी नयी -पुरानी रचनाओं का स्वाद देते रहे | " उनकी कुछ पंक्तिया मुझे अभी तक याद हैं " जहां भी जाता हूँ वीरान नजर आता है , इंसान के भेष में शैतान नजर आता है | " और राजकपूर की फिल "मेरा नाम जोकर " के लिए जो पंक्तिया उन्होंने लिखी थी " जरा सम्भल के चलो , आगे ही नहीं पीछे भी देखो ......| इसके बाद कई बार टोरंटो में काव्य मंच पर उनके दर्शन हुए | नीरज जैसे महान कवि को बनाने में कई शताब्दियाँ लग जायेंगी | फिर भी नीरज जैसा कवि अब सुनने को मिलेगा | उनमें राष्ट्र कवि की क्षमता थी | ईश्ववर उनकी परम आत्मा को शान्ति दे |
जवाब देंहटाएंश्याम त्रिपाठी प्रमुख सम्पादक हिन्दी चेतना
सादर नमन
जवाब देंहटाएंगीतकार और कवि नीरज जी को हार्दिक श्रधांजलि.
जवाब देंहटाएंकवि नीरज की कविता
जवाब देंहटाएंजिन्दगी कैसी ये पहेली हाय
मुझे अत्यंत प्रिय है।
सादर नमन है।