मंगलवार, 2 मई 2023

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 अनुपमा त्रिपाठी


1

चहक उठती है

मन की चिड़िया 

महक उठती है

मन की बगिया

 

खिल उठता है

घर का कोना-कोना

जी उठता है

मन का कोना -कोना

बन जाती हूँ बच्ची मैं जब 

घर आते हैं बच्चे 

लौट आता है बचपन मेरा 

संग होते जब बच्चे 

 

है ये बच्चों का बचपन 

या मेरा बचपन 

या मेरा बचपन दोहराता हुआ 

मेरे प्यारे बच्चों का बचपन 

 

माँ -माँ करता गुंजित कलरव 

अमृत- सा दे जाता है 

पीकर इसका प्याला 

मन हर पीड़ा दूर भगाता है 

 

खो जाती हूँ रम जाती हूँ 

छोटी सी इस दुनिया में 

घर फिर घर सा लगता मुझको 

घर आते जब बच्चे!!

2

कुछ बूँद अविचल

नयनों में बचाकर

कुछ अभिनंदन अजेय 

स्वरों में रचाकर

पल अनमोल

जी लिये ऐसे ,

जैसे सावन की हरियाली में

मेहँदी की लाली में

जीती है हरियाली ज़िन्दगी ...!!

 

8 टिप्‍पणियां:

  1. दोनों कविताएँ सुंदर, अनुपमा जी को हार्दिक बधाई!

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  2. बहुत सुन्दर कविताएँ, हार्दिक शुभकामनाएँ ।

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  3. वाह... बहुत सुंदर कविताएँ

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  4. बहुत सुंदर कविताएँ
    हार्दिक बधाई आदरणीया

    सादर

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  5. बहुत सुंदर कविताएँ।हार्दिक बधाई

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  6. बहुत सुंदर रचनाएँ ...हार्दिक बधाई।

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  7. हर्ष का संचार करती सुंदर रचनाएँ। बधाई

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  8. बहुत सुन्दर रचनाएँ, बधाई अनुपमा जी.

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