पद्मश्री डॉ. विष्णु पंड्या
( पूर्व निदेशक, साहित्य
अकादमी, गुजरात)
वृक्ष
पुरुष
युगांतरों
से एकान्तिक,
किन्तु
उदास नहीं
वह
वसंत में
भीतर
सृजन का संसार रचता है
ग्रीष्म
में जमीं से
संवाद
हेमंत
की ठिठुरती रातों में
वेलियों
को आलिंगन देता है
बारिश
की छोर में
एक
भीगा- सा गीत
पत्तियाँ
गाती हैं, झूमती
हैं
शिशिर
की मुस्कराहट
सूर्य
किरण से खेलती होगी
एक
दीर्घ प्रतीक्षा
उसे
ज़िंदगी की सार्थकता से मिलाती है
अचल
अडिग अनहद प्यार
और
प्यास से भरा है वृक्ष पुरुष
कोई
कोमल स्पर्श
उसे
मेघ धनुष के निकट लाएगा
ऐसा
विश्वास है।
अत्यंत भावपूर्ण उत्कृष्ट रचना सर 🙏🌹
जवाब देंहटाएंवाह,बहुत सुंदर कविता।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर कविता।
जवाब देंहटाएंहार्दिक बधाई 💐🌹
सादर
उत्कृष्ट कविता महोदय
जवाब देंहटाएंवाह!!
जवाब देंहटाएंसुंदर कविता।