डॉ.कविता भट्ट 'शैलपुत्री'
उसने कुटिल मुस्कान के साथ कहा,
मैं तो राहु हूँ- तुम्हें ग्रास बना लूँगा।
मैंने मंद मुस्कान सहित निर्भीक कहा-
मैं तो सूरज हूँ - कालिमा निगलता हूँ ।
तनिक सोच- भौहें नचाकर उसने कहा,
केतु हूँ मैं- तुम्हारा तेज तो हर ही लूँगा।
मैं चंदा हूँ - मैंने प्रसन्न मुद्रा में कहा,
कलाओं में निपुण- उगता चलता हूँ ।
नए रूप धर, धमकाता वह आजकल
और मैं उन्मुक्त, उषा के अंक में पड़ा हूँ ।
अब अरुणोदय होगा - कुछ क्षणों में ही
मेरे साथ समग्र विश्व हँसेगा- उसे हराकर।
-0-
सुन्दर रचना, हार्दिक शुभकामनाएँ ।
जवाब देंहटाएंअब अरुणोदय होगा कुछ ही क्षणों में...
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर सरस कविता।
हार्दिक बधाई आदरणीया दीदी 🌷💐
सादर🙏🏻
अनुपम आशावादी भाव की आभा बिखेरती 'अब अरुणोदय होगा'कविता।
जवाब देंहटाएंपुन: हार्दिक बधाई।
सादर🙏🏻
प्रेरक कविता। हमारे जीवन में बाधाएँ आती रहती हैं, लेकिन हमें सूरज और चन्द्रमा की तरह निरन्तर अपने पथ पर अग्रसर रहना चाहिए। आपका सृजन -कार्य ऐसे ही चलता रहे।
जवाब देंहटाएंअरुणोदय की तरह ही सकारात्मक सोच की किरणें बिखेरती सुंदर कविता। हार्दिक बधाई कविता जी।
जवाब देंहटाएंअप्रतिम रचना ... हार्दिक बधाई कविता जी।
जवाब देंहटाएंकविता बेटी ! युग -युग जियो उन्नत कर भाल,
जवाब देंहटाएंतुम जो लिखती हो सच्चे मन से बहुत ऊंचे हैं तुम्हारे ख्याल ||
तुम्हारी लेखनी में एक जादू है| पढकर मन तृप्त हो गया |श्याम हिन्दी चेतना
अनुपम भावों का संगम ....
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर भाव।हार्दिक बधाई।
जवाब देंहटाएंसकारात्मक कविता है कविता जी की हार्दिक बधाई |
जवाब देंहटाएंअत्यंत सुंदर भावपूर्ण यथार्थ सृजन.... वाह्ह 🙏🌹
जवाब देंहटाएंबहुत ओजपूर्ण और आत्मविश्वास से लबरेज कविता है, मेरी हार्दिक बधाई स्वीकारें
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर आशावादी रचना
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना ... हार्दिक बधाई कविता जी।