दो मुक्तक
1-डॉ. कविता भट्ट
रेत को मुट्ठी में भर करके
हम फिसलने नहीं देते ।
डराएँगे क्या अँधेरे
अपनी बुरी निगाहों से हमें ।
फ़ख्र तारों पर है जो उजालों को ढलने नहीं देते ॥
2-रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
डर था ज़िन्दगी न जाने
किधर जाएगी ।
गूगल से साभार |
रेत बनकर ये किसी दिन बिखर जाएगी ॥
तुम जो अचानक मिले आज हमें मोड़ पर ।
अब हमको लगा कि क़िस्मत सँवर जाएगी॥
दोनों ही मुक्तक अति सुंदर। भाव पूर्ण एवं शब्द संयोजन भी उत्तम। हार्दिक बधाई।
जवाब देंहटाएंBahut sunder muktak sir
जवाब देंहटाएंसुन्दर , सकारात्मक भाव भरे मुक्तक बहुत अच्छे लगे |
जवाब देंहटाएंदोनों रचनाकारों को हार्दिक बधाई !!
कविता जी
जवाब देंहटाएंनमस्कार।
आपका मुक्तक श्रीमती काम्बोज को बहुत पसंद आया।
हार्दिक आभार आप सभी का।
जवाब देंहटाएंआदरणीया श्रीमती को भी प्रणाम एवं धन्यवाद।
कमला जी, भैया आप दोनों के मुक्तक बहुत सुंदर हैं । बधाई
जवाब देंहटाएंआप दोनों को सुंदर सृजन के लिए हार्दिक बधाई ।
जवाब देंहटाएंअति सुंदर सृजन।
जवाब देंहटाएंआप दोनों को हार्दिक बधाई।
आ. भैया जी और आ. कविता जी आप दोनों के भावपूर्ण और उम्दा मुक्तक के लिए हार्दिक बधाई
जवाब देंहटाएंकमला जी हिमांशु भैया जी बहुत सुन्दर मुक्तक । बधाई स्वीकारें ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर और भावपूर्ण मुक्तक के लिए आप दोनों रचनाकारों को हार्दिक बधाई !
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर एवं भावपूर्ण मुक्तक! आप दोनों को हार्दिक बधाई!
जवाब देंहटाएं~सादर
अनिता ललित
सुंदर प्रयोग एक विषय पर गुणात्मक मुक्तक हेतु कविता बहिन जी और आदरणीय कंबोज सर जी आप दोनों को हार्दिक बधाई ।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार आप सभी प्रबुद्ध जनों का। कृपया भविष्य में भी स्नेह बनाये रखिएगा।
जवाब देंहटाएंदोनों मुक्तक बहुत लाजवाब...| हार्दिक बधाई...|
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