मुक्तक
डॉ.कविता भट्ट 'शैलपुत्री'
1
सूखा खेत
बरसती बदली हूँ मैं
आसुरी
शक्तियों पर बिजली हूँ मैं ।
निकलने दीजिए मुझे नीड़
से
ये मत पूछना
कि क्यों मचली हूँ मैं ॥
2
फूल -पाँखुरी भी हूँ , तितली
हूँ मैं
उमड़े तूफ़ानों
से निकली हूँ मैं ।
असीम
अम्बर में लहराने तो दो
ये कभी मत
कहना कि पगली हूँ मै॥
3
गिरी , हौसलों से सँभली हूँ मैं
तभी तो
यहाँ तक निकली हूँ मैं ।
शिखर पर पताका
फहराने दो
अभी तो
बस घर से चली हूँ मैं ॥
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