शुक्रवार, 28 सितंबर 2018

81


कविताएँ

डॉ.विजय प्रकाश
1
केवल संघर्ष ही नही जिंदगी में
बातें हर दौर की करता हूँ मैं
भूखे-प्यासे बचपन के
 दो कौर की करता हूँ मैं।
सूखती नदियों, कटते जंगलों
की पीड़ा पर गौर करता हूँ मैं
बदलेगी मानसिकता, सँभलेगा मानव
बरसेगी खुशहाली, झूमेगा जीवन
उम्मीद उस दौर की करता हूँ मैं।
2
मस्त मलंग, जोश ही जोश,
उमंग ही उमंग।
अनंत को पाने की लालसा,
जिज्ञासा भरा मन।
भेदभाव, ऊंच-नीच,
तेरे-मेरे से से परे।
मधुबन में फूल सा,
 खिलता रहे बचपन।।
-0- हे... गढ़वाल विश्वविद्यालय,श्रीनगर (गढ़वाल) उत्तराखण्ड

ई-मेल - vijaybhatt66@gmail.com



सोमवार, 24 सितंबर 2018

79-किसको जलाया जाए

डॉ. कविता भट्ट

किसको जलाया जाए 

जब सरस्वती दासी बन; लक्ष्मी का वंदन करती हो    
रावण के पदचिह्नों का नित अभिनन्दन करती हो  
सिन्धु-अराजक, भय-प्रीति दोनों ही निरर्थक हो जाएँ   
और व्यवस्था सीता- सी प्रतिपल लाचार सिहरती हो 
अब बोलो राम! कैसे आशा का सेतु बनाया जाए 
अब बोलो विजयादशमी पर किसको जलाया जाए 

जब आँखें षड्यंत्र बुनें; किन्तु अधर मुस्काते हों 
भीतर विष-घट, किन्तु शब्द प्रेम-बूँद छलकाते हों 
अनाचार-अनुशंसा में नित पुष्पहार गुणगान करें  
हृदय ईर्ष्या से भरे हुए, कंठ मुक्त प्रशंसा गाते हों 

चित्र ; गूगल से साभार
क्या मात्र, रावण-दहन का झुनझुना बजाया जा  
अब बोलो विजयादशमी पर किसको जलाया जा   

 विराट बाहर का रावण, भीतर का उससे भी भारी
असंख्य शीश हैं, पग-पग पर, बने हुए नित संहारी
सबके दुर्गुण बाँच रहे हम, स्वयं को नहीं खंगाला    
प्रतिदिन मन का वही प्रलाप, बुद्धि बनी भिखारी  

कोई रावण नाभि तो खोजो कोई तीर चलाया जा
अब बोलो विजयादशमी पर किसको जलाया जा 
-0-
इस कविता का  नीचे दिए गए लिंक 'डॉ. कविता भट्ट-काव्य -पाठ-24' पर वीडियो  देख सकते हैं -
डॉ.कविता भट्ट काव्य-पाठ-24

शुक्रवार, 21 सितंबर 2018

78-उदन्ती

डॉ.कविता भट्ट
मुकद्दमा 

77-उदन्ती


डॉ.कविता भट्ट
1-कंठ है प्यासा 

2-काँच की चूड़ियाँ

76-उदन्ती


डॉ.कविता भट्ट
शैलबाला






























































                 




75-उदन्ती

तमसो मा  ज्योतिर्गमय
डॉ.कविता भट्ट











सोमवार, 17 सितंबर 2018

74-चर्चा में घुँघरी


 8 सितम्बर 2018 को  1:30- 4:30 अपराहन में हिन्दी प्रचारिणी सभा  और हिन्दी चेतना की और से एक
 संगोष्ठी  का आयोजन मार्खम नगर की  मिलिक्न्स मिल्स लाइब्रेरी में  किया गया । इस अवसर पर मार्खम क्षेत्र
के सांसद  श्री बॉब सरोया जी द्वारा चार पुस्तकों और दो पत्रिकाओं के विशेषांकों का विमोचन भी किया गया । ये पुस्तकें थीं-लघुकथा का वर्त्तमान परिदृश्य (हिमांशु ),जरा रोशनी मैं लाऊँ ( डॉ.भावना कुँअर ) ,
घुँघरी (डॉ. कविता भट्ट ), तुम सर्दी की धूप ( हिमांशु ), और पत्रिकाएँ - हिन्दी चेतना ( यशपाल विशेषांक मुख्य सम्पादक

श्याम त्रिपाठी  और सहयोगी सम्पादक-डॉ.भावना कुँअर ,डॉ.ज्योत्स्ना  शर्मा व डॉ.कविता भट्ट   ) , सरस्वती सुमन -क्षणिका विशेषांक ( मुख्य सम्पादक डॉ. आनन्दसुमन सिंह , अतिथि सम्पादक हरकीरत हीर व हिमांशु )।
चारों पुस्तकों को सभा ने भवन में  पोस्टर के रूप  में प्रदर्शित भी किया था । इस   कार्यक्रम  के आयोजन पर
 ओंटेरियो  प्रांत के प्रमुख मंत्री ( मुख्य मंत्री ) आदरणीय डग फोर्ड  और वयोवृद्ध  राजनेता  आदरणीय रेमण्ड चो के शुभकामना संदेश भी पढ़े गए ।

             सर्व प्रथम श्री  श्याम त्रिपाठी जी ने   चारों पुस्तकों  पर अपने विचार प्रस्तुत किए । तत्पश्चात् कृष्णा वर्मा 
जी ने चारों पुस्तकों पर अपनी गंभीर  विवेचना  प्रस्तुत की , जिसे यथाशीघ्र  यहाँ  दिया जाएगा । इसके बाद  हाइकु पर विशेष चर्चा के अंतर्गत  मैंने   विविध पक्षों पर विस्तार से बताया गया । अंतःप्रकृति हो या बाह्य प्रकृति ,उसे हाइकु में बाँधना श्रमसाध्य नहींबल्कि भावसाध्य है। सूक्ष्म अति सूक्ष्म भाव को यदि  तदनुरूप भाषा में बाँधना है , तो यह तभी सम्भव है   ,जब हाइकुकार के पास  रचनात्मक तन्मयता हो   विषय को सरल और व्यावहारिक बनाने के लिए कुछ उदाहरण भी दी गए । सम्मान  और काव्य-पाठ  के साथ  कार्यक्रम सम्पन्न  हुआ ।
1-डॉ.सुधा गुप्ता –
 1-काठ के घोड़े, / चलता तन कर /माटी-सवार ।-
2- चाँदी की नाव / सोने के डाँड लगे / रेत में धँसी ।-3- चिनार पत्ते / कहाँ पाई ये आग/ बता तो भला।-  4-दु:ख ने माँजा / आँसुओं ने धो डाला  / मन उजला।-5-काजल आँज / नभ-शिशु की आँखों /हँसी बीजुरी
-०-
-2-रामेश्वर काम्बोज –
1-सिन्धु हो तुम / मैं तेरी ही तरंग, / जाऊँगी कहाँ ?-2- लिपटी लता / लाख आएँ आँधियाँ /तरु के संग।    3--घना अँधेरा / सिर्फ़ एक रौशनी / नाम तुम्हारा।
3- डॉ.कुँवर दिनेश
1-नदी में बाढ़ / नेता-अधिकारी की /मैत्री प्रगाढ़। 2-प्रात: मंदिर / तनाव दिन भर/सायं मन्दिर ।
4-डॉ.भावना कुँअर
1- फूल -गगरी /टूटकर बिखरी /गन्ध छितरी। 2-घाटियाँ बोलीं-/वादियों में किसने /मिसरी घोली?
3-चिड़िया रानी / खोज़ती फिरती है /दो बूँद पानी।
5-डॉ.ज्योत्स्ना शर्मा
1-काटें न वृक्ष / व्याकुल नदी-नद / धरा कम्पिता । 2-पीर नदी की- / कैसे प्यास बुझाऊँ   /तप्त सदी की  !
6-डॉ.कविता भट्ट
1-किसको कोसें ?/हर शिला के नीचे / भुजंग बसे ।-2-डाकिया आँखें / मन के खत भेजें / प्रिय न पढ़े।
4-मैं ही बाँचूँगी / पीर-अक्षर पिय, /  जो तेरे हिय।

शुक्रवार, 14 सितंबर 2018

73-हिन्दी -दिवस

मेरी बीमार माँ


डॉ.कविता भट्ट

मेरी नींद खुली तो दिल में हलचल बड़ी थी,
घबरा के देखा मैं अस्पताल के सामने खड़ी थी
उसी समय नर्स ने रजिस्टर देखकर पुकार लगाई
हिन्दीनाम की औरत के साथ कौन आया है भाई
आसपास मेरे तथाकथित भाई-बहन चिल्ला रहे थे
आईसीयू में हमारी बुढ़िया माँ है’-ऐसा बता रहे थे
जिसे हमारे पूर्वज वर्षो पहले ओल्ड-एज होम छोड़
आए थे
वहीं के कर्मचारी आज सुबह ही उसे अस्पताल लाए थे

ऑक्सीजन लगी बुढ़िया कभी भी मर सकती थी
अपनी वसीयत ओल्ड एज होम के नाम कर सकती थी
समझी नहीं फटेहाल बुढ़िया को माँ क्यों बता रहे थे
घड़ियाली आँसुओ से मेरे भाई बहन क्या जता रहे थे

वहीं जींसटॉप में 'इंग्लिश'नामक औरत मुस्करा रही थी
जो कई सालों से खुद को हम सबकी माँ बता रही थी
क्या है, गड़बड़झाला मुझे समझ ही नहीं आया
और मैंने पास खड़े डॉक्टर से माज़रा पुछवाया

सौतन है वो तुम्हारी माँ की जिसने साजिशन डेरा जमाया है
डॉक्टर बोला इसी ने तुम्हारी माँ को ओल्डएज होम भिजवाया है
पर मुझे लगा की डॉक्टर को भी अधूरी जानकारी थी
मात्र सौतन की नहीं, वो हम सबकी साजिश की मारी थी

लोरियाँ याद रही हमें ,लेकिन हम माँ को भूल गए
अपनी माँ की कुटिल सौतन के गले में ही झूल गए
मैं पास गई माँ के, नर्स खड़ी थी वार्ड के दरवाजे खोलकर
पोते- पोतियों से मिलवाओ बीमार माँ रो पड़ी ये बोलकर

मैंने कहा- वो अमेरिका तो कुछ इंग्लैण्ड में पढ़ रहे हैं
लेकिन वो तुम्हारी चिंता छोड़कर आपस में ही लड़ रहे हैं
खुद को अलग- अलग परिवारों का बता रहे हैं
तुम्हारी भावी पीढ़ी हैं ऐसा कहने में घबरा रहे हैं

माँ बोली -उनके साथ मुझे रखो ,मैं उन्हें दुलार दूँगी
सहला के जीवन, रंग, रस और संस्कार उपहार दूँगी
मेरी ममता और लोरियों का कर्ज चुकाओगे क्या
ओल्ड एज होम से वापस मुझे ले जाओगे क्या

मेरे जवाब के लिए अब भी वह बिस्तर पे पड़ी है
मेरे उत्तर की प्रतीक्षा में उसकी धड़कन बढ़ी है
मैं निरुत्तर कभी अपने तमाशबीन भाई बहनों को देखती हूँ
कभी अपनी बीमार माँ को देख जोरों से चीखती हूँ-...
क्या हम उसे घर ला सकेंगे...
या
उसे तड़पते हुए मरने देंगे ?
(दर्शन शास्त्र विभाग,हे०न० ब० गढ़वाल विश्वविद्यालय,श्रीनगर गढ़वाल उत्तराखंड

मंगलवार, 4 सितंबर 2018

72-क्षणिकाएँ


डॉ.कविता भट्ट

1-अथाह प्रेम

उसने कहा
मुझे तुमसे अथाह प्रेम है
मैंने कहा-
तुम्हें यह प्रेम मुझसे है 
या स्वयं से !

2- कामनाएँ

 लहलहाती फसल-सी 
कामनाएँ उसकी
ओलावृष्टि- सी युग दृष्टि
विवश कृषक-सी वह
फिर भी चुनती 
ओलों को मोती -सा