रविवार, 15 नवंबर 2020

177- नदी के आगोश में

डॉ कविता भट्ट 'शैलपुत्री'

1


लिपटा वहीं

घुँघराली लटों में

मन निश्छल,

चाँद झुरमुटों में

न भावे जग-छल ।

 2

ढला बादल

नदी के आगोश में

हुआ पागल

लिये बाँहों में वह

प्रेमिका -सी सोई।

3

मन वैरागी

निकट रह तेरे

राग अलापे,

सिंदूरी सपने ले

बुने प्रीत के धागे।

4

मन मगन

नाचता मीरा बन

इकतारे -सा

बज रहा जीवन

प्रीत नन्द नन्दन!

5

रवि -सी तपी

गगन पथ  लम्बा

ये प्रेमपथ ,

है बहुत कठिन 

तेरा अभिनन्दन!


मंगलवार, 10 नवंबर 2020

176-प्रथम अनिवार्य प्रश्न-सा

प्रथम अनिवार्य प्रश्न-सा

डॉ.कविता भट्ट 'शैलपुत्री'

 

पहाड़ियों से बहती बयार;

मेरे तन-मन को छूकर

संगीत के साथ बहती है;

चढ़ाई-उतराई की पीड़ा को

कर्णप्रिय स्वरलहरी में बदलने हेतु

सक्षम है; अतः मेरे लिए विशेष है।

 

मेरे तथाकथित घर की

खिड़की से दिखती है

एक नदी, जिसकी मृदु-तरंगित लहरें

कठोर सीने वाले पत्थरों पर

संघर्ष से सफलता लिखने हेतु

सक्षम हैं; अतः मेरे लिए विशेष है।

 

और हाँ दिखता है एक पीपल भी

दूर पर्वत की चोटी पर खड़ा

कर्मयोगी-सा तपस्यारत

सबके बीच रहकर भी है विरक्त

बिना प्रतिदान चाहे, प्राणवायु बाँटने हेतु

सक्षम है;- अतः मेरे लिए विशेष है।

 

बहती बयार, नदी की लहरों

और कभी-कभी पीपल बन


परीक्षापत्र के प्रथम अनिवार्य प्रश्न
-सा

एक प्रश्न, जो उठता ही रहता है

प्रायः मेरे व्याकुल मन में;

'हम' विशेष क्यों नहीं हो सके?

-0-

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उदन्ती 


रविवार, 8 नवंबर 2020

175-तू प्रेमघन

डॉ.कविता भट्ट 'शैलपुत्री'


1


शुष्क पवन
मरुभूमि जीवन
तू प्रेमघन।

2

जग -जंजाल

झूठा यह मधुदेश

तुम विशेष।

3

तोड़ो बन्धन

करो तो आरोहण

जग-क्रन्दन।

4


प्रेम-प्रस्तर

अडिग रह बने

शैल -शिखर।

5

तू हिमधर

पवन झकोरों में

खड़ा निडर।