शुक्रवार, 30 दिसंबर 2022

413-प्रकाश लिखो!

 डॉ. कविता भट्ट 'शैलपुत्री'

 


त्रिनेत्रा! मन- भित्ति पर तुम दिव्य आकाश लिखो,

तमगृह कारा हुआ, तुम किञ्चित् प्रकाश लिखो!  

 

मैं जगती, जगती शयन मगन है

दग्ध इन हिमकणों में अगन है। 

युवती- सी हिमनिशा ने उन्मत्त हो

रुदन का राग छेड़ा दत्त चित्त हो। 

 

कमल- नयन खोलो, तुम मातृत्व आभास लिखो।

तमगृह कारा हुआ, तुम किञ्चित् प्रकाश लिखो!  

 

विलग हो या विमुख, कुछ तो कहो

काल को आमंत्रण- मौन ना रहो।

मंदिर की घंटियों- सी अनुनादित,

विग्रह- पगडंडियों-सी अनुप्राणित।

 

जगदम्ब दम्भ हरो, अब तुम निज प्रवास लिखो। 

तमगृह कारा हुआ, तुम किञ्चित् प्रकाश लिखो!  

 

मेरु को झंकृत किया, उद्गीत गाया,

जग भूला मैंने वही तो गीत गाया। 

तुम संग चलूँ  क्षुधा- तृषा भूलकर,

उन्मुक्त बाहों में रहूँगी मैं झूलकर। 

 

भक्ति लिखो, ज्ञान लिखो या तुम प्रयास लिखो। 

तमगृह कारा हुआ, तुम किञ्चित् प्रकाश लिखो!

-0-29-12-2023

 


शनिवार, 24 दिसंबर 2022

412-हथेली बिछाई तुमने

डॉ. कविता भट्ट 'शैलपुत्री'

 

हथेली बिछाई तुमने,

मैंने लहराके डग भरे।

सपनों की झूम खेती,

अब करने को पग धरे।

 

कल्पतरु- से तुम खड़े,

अपराजिता हो उर मिली।

मंद - मंद मुस्काती हुई-

पुष्पित सुरभित हर कली।

 

संजीवनी- सा संग हुआ,

मिलन समय से है परे।

नयन मूँदे क्षण पड़े हैं -

अधर- अधर पर धरे।

 

तुम घुल गए हो मुझमें,

मृदु- पहाड़ी संगीत- से।

नदी -सी उन्मुक्त बहती

प्रवाह है तुम्हारी- प्रीत से।

-0- 

मंगलवार, 6 दिसंबर 2022

409-खामोशी भी पिघले

डॉ. कविता भट्ट 'शैलपुत्री'


408-2019-रामचन्द्र शुक्ल पुरस्कार- 14 लिंक और चित्र

 

डॉ. कविता भट्ट 'शैलपुत्री'

1

डॉ. कविता भट्ट को मिलेगा साहित्य अकादमी का अखिल भारतीय आचार्य रामचन्द्र शुक्ल (आलोचना) पुरस्कार, उत्तराखंड में खुशी की लहर

https://www.vyavasthadarpan.com/big-breaking-news-about-dr-kavita-bhatt-uttrakhand/

2

https://indiatimesgroup.com/national/uttarakhand/Poet-and-writer-Dr-Kavita-will-get-Madhya-Pradesh-Sahitya/cid9302450.htm

3

कवयित्री व लेखिका डॉ. कविता को मध्यप्रदेश साहित्य अकादमी पुरस्कार, एक लाख रुपये मिलेंगे पुरस्कार में 

https://vichareknayeesoch.com/?p=14245

4

https://ddnews18.com/?p=23847

5

https://rantraibaar.in/?p=24190

5

https://samachaarindia.com/?p=7666

6

 https://samachaarplus.com/?p=40158

7

https://crimeuttarakhand.in/?p=10783

8

 https://nationnews24x7.in/?p=2548

 

9

*नेशन न्यूज़ 24x7.in*

 

http://www.madhepurakhabar.com/2022/11/blog-post_38.html?m=1

10

डॉ. कविताभट्ट”‘शैलपुत्री’  साहित्य-अकादमी-मध्य-प्रदेशस्य अखिल-भारतीय-आचार्य-रामचन्द्र-शुक्ल- (आलोचना-) पुरस्कारेण सम्मानिता। 

https://sanskritsamachar.com/?p=4413

11

* डॉ.कविता भट्ट ‘शैलपुत्री’  को साहित्य अकादमी,मध्य प्रदेश का अखिल भारतीय आचार्य रामचन्द्र शुक्ल (आलोचना) पुरुस्कार-*

 https://alagkhabar.com/2022/11/डाॅकविता-भट्ट-’शैलपुत्री’ /

12

अलग खबर

डॉ. कविता भट्ट को राष्ट्रीय सम्मान के लिए चयन होने पर खुशी 

https://navhindustanlive.com/dr-kavita-bhatt-is-delighted-to-be-selected-for-the-national-award/

13

डॉ. कविताभट्टशैलपुत्री’  साहित्य-अकादमी-मध्य-प्रदेशस्य अखिल-भारतीय-आचार्य-रामचन्द्र-शुक्ल- (आलोचना-) पुरस्कारेण सम्मानिता।

 https://sanskritsamachar.com/?p=4413

14

डॉ.कविता भट्ट ‘शैलपुत्री’  को साहित्य अकादमी,मध्य प्रदेश का अखिल भारतीय आचार्य रामचन्द्र शुक्ल (आलोचना) पुरस्कार-*

 https://alagkhabar.com/2022/11/डाॅकविता-भट्ट-’शैलपुत्री’ /

-0-

























शनिवार, 3 दिसंबर 2022

407-गीत

 

आचार्य देवेन्द्र देव

 


कल्पित रंग-महल में
, तुमको, सजती देख, प्रिये!

गीत हमारे, खड़े-खड़े मुस्काते रहते हैं।।

 

अर्धगुलाबी देह चन्दनी, हरियल साड़ी में,

रस-गन्धित आकाशी बिजली जैसी लगती है।

सिन्दूरी रेखा के नीचे चमकीली बिंदिया,

क्या बताएँ,झिलमिल करती कैसी लगती है?

 थिरक-थिरककर अधर, इधर, दृग के संकेत, उधर,

मन-मिलिन्द को अपने पास बुलाते रहते हैं।।

 

जब तुम थीं, तब, दिन लगते थे हुरियारों जैसे,

इन्दुमती रातें लगती थीं ज्योति-नहायी-सी।

मेरे सौभाग्यों के सीमित अँगने में तुम थीं,

विधि के द्वारा रम्य रूप की नदी बहायी-सी।

 आज तुम्हारे भुज-बन्धन के मोही प्राण, सुमुखि!

अपने ही सपनों के तन सहलाते रहते हैं।।

 

इतना सब कुछ होने पर भी है सन्तोष यही,

दुनियादारी, मन से तुमको दूर न कर पा

सौगन्धों के अनुबन्धों से मिली शक्ति, हमको,

अपना जीवन खोने को मजबूर न कर पा

 कुछ आश्वासन होते हैं ,जो पागल प्राणों को,

घंटों, दिवसों, सालों तक बहलाते रहते हैं।।

 

प्रीति-रीति के प्रणत पखेरू हम उड़ते रहते,

कस्तूरी की गन्ध लपेटे अपनी पाँखों में।

अधमुण्डित बैरागी जैसे फिरते रहते हैं,

आँज-आँज सुधियों का काजल गीली आँखों में।

 कबिरा के ढाई आखर के मठ के योगी हम,

गाँव-गली क्या, दर-दर अलख जगाते रहते हैं।।

-0-

 

 


शुक्रवार, 2 दिसंबर 2022

406-फिर मिलेंगे (फेरी भेटुंला)

 डॉ. कविता भट्ट 'शैलपुत्री'

 

 

 

जब आप बैठते हो ट्रेन में


जाते हो दूर- किसी अपने से

ट्रेन की स्पीड के साथ

कदमताल करती धड़कनें

तेज़ होती जाती हैं-

स्टेशन के पीछे छूटते हुए

आपको लगता है जीवी

दम घुट जाएगा, साँसें रुक जाएँगी

आप दरवाज़े से बाहर झाँकते हुए

रोते हो बेतहाशा-

रुकता ही नहीं,

आँसुओं का सैलाब।

धीरे-धीरे ओझल हो जाता है-

आपका वह अपना- हाथ हिलाते हुए;

आप बर्थ पर ढेर हो जाते हो

फिर काँपते हाथों से

मोबाइल निकालकर-

कॉल लगाते हो;

उधर से आवाज आती है-

'रोओ मत, अपना ध्यान रखना

तुम्हें पता है ना, तुम्हारा रोना

दुनिया में सबसे बुरा लगता है,

आँसू पोंछो, मुस्कराओ,

जल्दी ही फिर मिलेंगे।'

फिर आप सिसकते हुए

धीरे-धीरे चुप हो जाते हो

इस उम्मीद में कि फिर मिलेंगे ही।

काश! दुनिया के स्टेशन पर खड़े होकर

जीवन की आखिरी ट्रेन में बैठे

किसी अपने को कोई अपना

ये दिलासा दे पाता-

रोओ मत, जल्दी ही फिर मिलेंगे!

-0-

 

फिर मिलेंगे (फेरी भेटुंला)

 मूल :डॉ.कविता भट्ट 'शैलपुत्री'

 नेपाली अनुवाद

 महेश चंद्र बराल ओम श्री

 

 

जब तिमी बस्छौ ट्रेन मा


जान्छौ टाढ़ा कुनै आफ्नो सित

ट्रेन को गति संगै

कदमताल गर्दै ढुकढुकी

बढदै जाने छ

स्टेशनहरु पछाड़ी छुटदै जादा

तिमीलाई लाग्ने छ

घांटी सुके झै , सांस रूके झै

तिमी ढोका बाट हेर्दै

रुन्छौ बेस्सरी

रुक्दैन आंसुको सैलाव

अलिअली गरि ओझेल हुन्छन

तिमी बर्थमा खसे झै हुन्छौ

फेरी थर्थराए का हातले

मोबाइल निकालेर

कॉल लगाऊछौ

उता बाट आवाज आऊछ!

न रुनु है, आफ्नो ध्यान राख्नु

तिमीलाई थाह नै छ नी, तिम्रो रुनु

संसारमा सबैलाई न राम्रो लाग्छ आंसु पोछ्नुस , मुस्कुराउनुस

छिटो  फेरी भेटुंला।

फेरी तिमी सिसकदै

अलि अली गरी चुप हुन्छौ

यो आशा मा कि फेरी भेट हुने नै छ।

काश!संसारको स्टेशन मा उभिएर

जीवन को अंतिम ट्रेनमा बस्दा

कुनै आफ्नोलाई कुनै आफ्नो

यो भरोसा दिन सक्थ्यो

न रुनु, छिटो फेरी भेटुला।

-0-