गुरुवार, 28 अप्रैल 2022

350-तुमसे मोह में बँधी हुई हूँ,

 अदिति रॉय

 तुमसे मोह में बँधी हुई हूँ,


दिल से दिल तक जुड़ी हुई
हूँ,

तुम चाहो तब तक,

सब छोड़-छाड़,

तुममें बिल्कुल सदी हुई हूँ

 

तुमसे कोई लेन- देन होगा,

पुराना कोई तालमेल होगा,

तभी तो आँखें बंद करके,

तुममें खुद को पिरोई हुई हूँ

 

रिश्ते का कोई नाम नहीं है,

बातों का कोई काम नहीं है,

मन से स्वीकार कर लिया है,

तुम्हें अपना मानकर सोई हुई हूँ

 

शब्द- अपशब्द बन गए अगर,

स्वार्थ राह बदल दे अगर,

लांछनों से युग भर जाए अगर,

तुम तब भी मेरे साथ रहोगे,

ये इच्छा हृदय में सँजोए हुए हूँ

-0-

 

बुधवार, 27 अप्रैल 2022

349-सूरज झाँकेगा

 

डॉ.कविता भट्ट 'शैलपुत्री'

 

  राख हुआ जज्बा, मगर

          सुलग रही इक चिंगारी।


बोझ खत्म उम्मीदों का

          और साँसें भारी - भारी।

तुम तो रौशन हो ही गए

          काल कोठरी हमें प्यारी।

कौन बाँचता काले कागज

           गाया राग जो दरबारी।

उनके प्यार में खोए हम

           जो घृणा के हितकारी।

संन्यासी बनते भी कैसे

            दूजे के हित ही संस्कारी।

चलो तपस्या बहुत हो चली

            धृतराष्ट्र को थामे गांधारी।

पाण्डव खांडव घूम रहे

            जीवन संघर्ष हुआ संहारी।

इंद्रप्रस्थ भी बन जाएगा।

             यदि इच्छा शक्ति बनवारी

कभी तो सूरज झाँकेगा

             महकेगी तब यह फुलवारी।

-0-

शनिवार, 23 अप्रैल 2022

347- पुस्तक

 डॉ.कविता भट्ट 'शैलपुत्री'

(विश्व पुस्तक-दिवस पर )

मात्र एक देह नहीं,

अनंत ब्रह्मांडीय ऊर्जा युक्त


प्राण है - पुस्तक।

ब्रह्म, चेतना अथवामात्र एक देह नहीं,

अनंत ब्रह्मांडीय ऊर्जा युक्त

प्राण है - पुस्तक।

ब्रह्म, चेतना अथवा

आत्मा है - पुस्तक

जो अभिव्यक्त करती है

शब्द- सृष्टि के द्वारा

ब्रह्म के विराट स्वरूप को।

देह में अंतर्निहित होते हैं -


पंच महाभूत -

अग्नि, जल, पृथ्वी, आकाश और वायु

किंतु सोचो, यदि ना हो

पंच तन्मात्र - रूप, रस, गंध, शब्द और स्पर्श

तो महाभूत का क्या अस्तित्व?

पुस्तक में उल्लिखित अक्षर

और अक्षरों से निर्मित शब्द

ब्रह्म अर्थात् परम चेतना हैं।

प्राणवान - आत्म प्रतिष्ठित पुस्तक

ब्रह्म और सृष्टि - दोनों ही है।

व्यक्ति पर निर्भर है कि

वह इसे देह मानता है

अथवा चेतना - ब्रह्म - आत्मा

-0-


बुधवार, 13 अप्रैल 2022

345- श्री राम नवमी (चौपाई)

भगत सिंह राणा ' हिमाद '

 

नवमी  तिथि  पुनीत   मधुमासा ।


आम्र विटप कोकिल करि वासा ।।

प्रगटे   राम  जगत   हित   कारी ।

अवध   पुरी  में   खुशियाँ भारी ।।1

 

हर्षित   नगरी    अरु   रनिवासा ।

पुण्य  दिवस  दशरथ मन आशा ।।

गीत  सुमंगल  बहु   विधि   गाये ।

कौशल्या    मन    बोध    बधाये ।।2

 

शुभ    समाचार    दासी   दीन्हा ।

उपाय  विविध  पुरोहित  कीन्हा ।।

बोले   दशरथ   तब   मृदु  बानी ।

दीन्हि  आज   सुख  तीनों  रानी ।।3

 

तीन  कुँवर  पुनि  जन्म   सुहाये ।

हर  घर   उत्सव   प्रजा   मनाये ।।

तोरण  कलश  नगर सब  साजा ।

बाँटेहुँ   राजकोष   धन   राजा ।।4

 

देव   दनुज   किन्नर  नर   नागा ।

तीन  लोक  हर्षित  सब  जागा ।।

गौ ब्राह्मण सब विधि सुख पाये ।

जब   रघुवीर  अवध  में   आये ।।5

-0-

रविवार, 10 अप्रैल 2022

343- राम वही हैं

राजीव रत्न पाराशर, कैलिफोर्निया


सात वृक्ष और एक बाण की कथा विदित है राम वही हैं।


मानव मन में मर्यादा का मर्म मुदित है राम वही हैं॥


वाणी मे जो वेद विधा विद्या व्यापित है राम वही हैं।

नित्य निरंतर अनहद में जो नाद निहित है राम वही हैं॥


सिया, गौतमी, शबरी का उद्धार उचित है राम वही हैं।

दशरथ- सुत, दशशिर -भंजन, दश दिश चर्चित हैं राम वही हैं॥


सुष्मित, भूषित, संकोची संवाद सुमित हैं राम वही हैं।

अजानुभुज, पुरुषोत्तम अश्वःमेध विजित हैं राम वही हैं॥


राजीवलोचन, पंकज पद, करकमल कथित हैं राम वही हैं।

विकट समय में साहस का जो भाव प्लवित है राम वही हैं ॥

-0-

शनिवार, 9 अप्रैल 2022

342-सुंदरतम कविता होती

 डॉ.कविता भट्ट 'शैलपुत्री'

  


निज मन की गहन पीड़ा
एँ

यदि शब्दों में समझा पाती

कहने में प्रतिकार न होता

तो सुंदरतम कविता होती।

 

पलकों के बंद कपाटों से

कुछ आशाएँ झलका पाती

रंगीन नहीं, श्वेत-श्याम सही

तो सुंदरतम कविता होती।

 

माना जीवन में अँधेरे थे

किंतु तब तुम नहीं मेरे थे

कुछ तेरे फेरे जो ले लेती

तो सुंदरतम कविता होती।

 

सपन-तंतु खिंचे टूट गए

क्या कुछ पीछे छूट गए

अधर धरकर सहला पाती

तो सुंदरतम कविता होती।

 

जब दरपन का मोह किए

सौंदर्य गात से विलग हुए।

संध्या जो उषा तक जाती

तो सुंदरतम कविता होती।

 


तेरे मन से मेरे मन तक

नदियाँ हैं, किंतु न सेतु बँधे

सेतु नहीं, नौका ही चलती

तो सुंदरतम कविता होती।

 

क्यों हैं रक्तिम छल्ले से

आँखों की भीगी छत पर

यदि तुमको समझा सकते

तो सुंदरतम कविता होती।

 

अग्निशिखा- सी जलती है

सौ-सौ योजन चलती है

प्रीत शिला से न टकराती

तो सुंदरतम कविता होती।

 


संकल्प राग न गा पाए

सुहाग तेरे ना सजा पाए

सिंदूरी चूनर जो ओढ़ा देते

तो सुंदरतम कविता होती।