बुधवार, 6 मार्च 2024

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व्यथा का शृंगार (सॉनेट) 

 अनिमा दास 


व्यथा का शृंगार (सॉनेट)
 

श्याम-वर्ण सी व्यथा...श्वेत वर्ण से स्वप्न

इस दूरत्व में हुए हरित...शोण से क्षरित

कस्तूरी सी इच्छा स्पंदित...सदैव गंधित

किंतु मौन..नहीं है इसके कंठ में निस्वन।

 

इस युग में भी एकपर्णी मैं..द्विपर्णी कथा

स्त्री-पुरुष की सभ्यता में बनी हूँ... संदेह

मैं कहूँ -सभी नीरव..अभिशाप- सा स्नेह

मेरी प्रत्येक स्थिति है..व्यथा केवल व्यथा।

 

सुप्त शुक्ति में ऊषा-शुभ्रा..मुक्ति-कामना

में रत..। देव-वेदी पर दीप्त है एक दीपक 

कि स्वतः आ जाए कृष्ण हंस पर...चंद्रक 

तम के तप में न लुप्त हो जाए...प्रार्थना।

 

सम्मिलित स्वर में उठे हैं जलधि में ज्वार

कि उद्वेलित व्यथाएँ करने लगी हैं शृंगार।

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