सोमवार, 30 जनवरी 2023

422-यात्रा की थकान

 

 रश्मि विभा त्रिपाठी

 


भँवर में

बुरी तरह से

फँसने पर

सर से पाँव तलक

धँसने पर

मेरी आँखों के गढ्ढों में

क्यों नहीं भरा

एक बूँद भी

पानी !

 

सुनो!

सच ये है कि

मैं

नहीं रखना चाहती

अपने पास

हार की

कोई निशानी

दिशाएँ

दोस्त बनकरके

दिन- ब- दिन

मुझे समझाती रही हैं

भीड़ में रास्ता

दिखलाती रही हैं

और हमेशा ही

ये जताती रही हैं

कि

कभी न रोना

परिस्थितियों के फेर से

दिग्भ्रमित न होना

मेरी धरती माँ ने

मेरा दामन भरा

आकाश पिता ने

सर पर हाथ धरा

सूरज भाई ने

चिट्ठी में लिखकर

भेजा है पता

मुझे क्षितिज का

तो अब रश्मि को

तुम ही बताओ

क्या करें?

क्यों घबराए- डरें?

कुछ भी हो

फिर भी

नहीं रहना

पलकें भिगोकर

दुख के साथ रहकर भी

दुख के हवाले होकर

मेरा पंथ दूसरा है

भले खुरदरा है

तो भी

वहीं रुकूँगी

जहाँ

समष्टि की

एक बहती निर्झरा है

हाँ!

थक गई हूँ

खा- खाकर ठोकर

खींच रही हूँ

घायल सपनों को

तन्मयता से,

खुद को ढो- ढोकर

मेरी पसलियों पर

भले ही

पड़ रहा है

आज

अत्यधिक दबाव

पर मुझे दिख रहा है

केवल और केवल

मेरा पड़ाव

वहाँ

मील के पत्थर

मेरे स्वागताकांक्षी हैं,

यात्रा की थकान

उतार रहे हैं

वे मेरे घायल पाँव धोकर।

-0-

421-अनुशासन नदी का

 डॉ. कविता भट्ट 'शैलपुत्री'


रविवार, 29 जनवरी 2023

420-ॠतुराज

 

डॉ. अनुपम अनन्य



वसन्त! तुम्हारा आगमन

सब कुछ रसमय हो जाता है

बदल जाता है सब कुछ स्वभावतः

प्रकृति की कठोरता

नीरसता मौसम की

प्राणों का छीजता सत्त्व

मन की निष्ठुरता

कायरता चरित्र की

जीने पन की मरती चाह

अपनों बिल्कुल अपनों के साथ भी

प्रकट अप्रकट शीतित शुष्कता

सब कुछ बदल जाता है

गुनगुनी धूप

खिलखिलाते उपवन

पवन की मादक गति

अंदर की ऊष्मा

चेहरे की कांति में ढलकर

दिव्य हो जाती है

सम्बंधो की प्राकृतिक नरमी-गरमी

अनायास ही प्रकट हो

फैल जाती है

स्नेह ऊष्मा से

नहा उठते हैं सभी

तुम्हारे!आते ही

सच मे ऋतुराज हो तुम।

 

-0- रामनगर, उत्तराखंड

गुरुवार, 19 जनवरी 2023

418

 















स्वामी विवेकानंद जी ने युवाओं में सुसंस्कार को बताया प्राथमिक आवश्यकता:     डॉ. कविता भट्ट 'शैलपुत्री'

 दिनांक 12.1.2023 को डॉ भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय आगरा से संबद्ध पालीवाल महाविद्यालय शिकोहाबाद की राष्ट्रीय सेवा योजना इकाई एवं डॉ भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय की राष्ट्रीय सेवा योजना सेल के संयुक्त तत्वाधान में राष्ट्रीय युवा दिवस के अवसर पर युवाओं के प्रेरणा स्रोत स्वामी विवेकानंद नामक विषय पर व्याख्यान का आयोजन उनकी 160वीं जयंती के उपलक्ष्य में किया गया जिसमें मुख्य अतिथि राष्ट्रीय सेवा योजना के क्षेत्रीय निदेशक डॉक्टर अशोक कुमार श्रोती, मुख्य वक्ता डॉ कविता भट्ट 'शैलपुत्री', ख्यातिलब्ध लेखिका और मुख्य न्यासी शैलपुत्री फाउंडेशन थीं।

  अपने उद्बोधन में डॉ कविता ने कहा कि स्वामी जी को युवा पढ़ें उनके बताए हुए चार प्रमुख सिद्धांतों अर्थात् धैर्य , शुद्धतादृढ़ता और प्रेम का पालन करें। उन्होंने स्वामी जी की पुस्तक द यूथ ऑफ इंडिया को पढ़ने के लिए भी सहभागियों को प्रेरित किया ।

राष्ट्रीय सेवा योजना में  विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए  ख्यातिलब्ध लेखिका डॉ. कविता भट्ट शैलपुत्री ने कहा कि भारतवर्ष सर्वाधिक युवाओं का देश है। देश को आगे बढ़ाने में युवाओं की महत्त्वपूर्ण भूमिका है।  इसके लिए स्वामी विवेकानंद जी द्वारा दिए गए जीवन के अनेक सिद्धांतों में से शुद्धता, धैर्य, दृढ़ता प्रेम और सहिष्णुता ऐसे सूत्र हैं जो युवाओं को अपने जीवन में अपनाने चाहिए।  डॉ कविता भट्ट ने कहा कि विवेकानंद जी ने कठोपनिषद के सूत्र उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत अर्थात् उठो, जागो और लक्ष्य प्राप्त होने तक वरेण्य जन से सान्निध्य द्वारा बोध जैसे पावन उद्देश्य की प्राप्ति के लिए समर्पण भाव से प्रयास करते रहो।  यही जीवन का मूल मंत्र होना चाहिए। 

 

डॉक्टर भट्ट ने यह भी कहा कि शिक्षा वह है जो सुसंस्कार प्रदान करे और सुसंस्कार हमारे जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करते हैं । सुसंस्कृत होकर  युवाओं को आत्मविश्वास और चरित्र निर्माण के साथ अपना, अपने राष्ट्र और विश्व के लिए उन्नयन का मार्ग प्रशस्त करना चाहिए।  आज छोटी-छोटी चुनौतियों से घबराकर युवा तनाव, अवसाद और दुश्चिंता के कारण या तो नशे की ओर चले जाते हैं या फिर आत्महत्या कर लेते हैं। ऐसा बिल्कुल नहीं करना चाहिए स्वयं पर विश्वास रखते हुए हमेशा अच्छे प्रयास करते हुए अपने स्वर्णिम भविष्य के लिए  समर्पित भाव से कार्य करना चाहिए।  प्रेम और सहिष्णुता जीवन का आधार हैं। अच्छे जीवन दर्शन के रूप में हमें राष्ट्र, प्राणियों, प्रकृति, समाज और मानव समाज से प्रेम करना आवश्यक है।

 क्षेत्रीय निदेशक ने कहा विद्यार्थी विवेकानंद जी के आदर्शों को जीवन का भाग बनाएं महाविद्यालय के प्राचार्य प्रोफेसर प्रवीण कुमार ने छात्र-छात्राओं को स्वामी जी की प्रेरणा लेकर स्वयं को राष्ट्र निर्माण में सहभागी बनने के लिए कहा राष्ट्रीय सेवा योजना के समन्वयक एवं व्याख्यानमाला के संयोजक प्रोफेसर रामवीर सिंह चौहान ने स्वामी विवेकानंद जी के जीवन पर प्रकाश डाला। राष्ट्रीय सेवा योजना के जिला नोडल अधिकारी एवं व्याख्यानमाला के आयोजन सचिव डॉ एमपी सिंह ने स्वामी विवेकानंद जी के द्वारा दिए गए स्लोगन 'उठो जागो और तब तक नहीं रुको जब तक आप अपने लक्ष्य की प्राप्ति नहीं कर लेते' के बारे में बताया। संचालन कार्यक्रम अधिकारी द्वितीय डॉ. टी एच नकवी ने किया । कार्यक्रम में डॉ. क्षमा रस्तोगी, डॉ. जयप्रकाश श्रीवास्तव, डॉ. मनोज पांडे, बीडी जैन की नौशीन सभा, दिव्या, ईश्वर, कौशलेंद्र, अमित, अक्षरा, देवेश दीक्षित,निशा, उमा गुप्ता, खुशबू सिंह, दीक्षा कुमारी, दिशा जैन  दीप्ति यादव  बंदना कुमारी, दीक्षा सक्सेना, अंकिता यादव, भावना यादव आदि अनेक वॉलिंटियर्स मौजूद रहे ।

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3-संस्कृत समाचार निम्नलिखित लिंक पर-

स्वामी विवेकानंद: उक्तवान् यत् युवावस्थायां सम्यक् संस्कृति: प्राथमिकी आवश्यकता अस्ति :डॉ कविताभट्ट 'शैलपुत्री'



बुधवार, 18 जनवरी 2023

417-गौरा का मैका ( जोशीमठ पर विशेष )

 डॉ.कविता भट्ट 'शैलपुत्री'

 


अहे! किसने हिम मुकुटा फेंका,

रो-सिसक रहा गौरा का मैका।

 

रोया पर्वत, चीखी जब घाटी,

स्वर्ण - रजत हुआ सब माटी।

 

नद शिखर झरने स्तब्ध खड़े हैं,

देखो बुग्याल लहूलुहान पड़े हैं।

 

वो रक्तिम सूरज उगा हिचका सा,

मौन पहाड़ी पर चंदा ठिठका सा।

 

संक्रान्ति हुई है ये क्रूर मकर सी,

हर पगडंडी यमपुरी की डगर सी।

 

पग - पग पर देखो झूली माया,

यों शंकर नगरी - रुदन है छाया।

 

नहीं क्षुधा-पिपासा शांत हुई तो,

अब अलकापुरी आक्रांत हुई वो।

 

ये आँसू खारे अब पी नहीं सकते,

आघात है गहरा- सी नहीं सकते।

 

मान बैठे स्वयं को मायापति तुम,

अरे मनुज कहाते- हे दुर्मति तुम।

 

निज भाग-विधाता कुछ तो बोलो,

ये मौन त्याग तुम मुख को खोलो।

 

निज हेतु षड्यंत्र स्वयं कर डाला,

निन्यांनब्बे फेरी नित-नित माला।

 

अहंकार में जो दिन रात हँसे हो,

निज काले कर्मों में स्वयं फँसे हो।

 

अब भी समय है तो संभलो थोड़ा,

सरपट दौड़ रहा- काल का घोड़ा।

 

सुरसा मुख असीम इच्छाएँ फैली,

कुचल डालो तुम ये मैली - मैली ।

 

नहीं चेते तो पश्चाताप से क्या हो,

त्रासदी - आँसू संताप में क्या हो।

 

विष बुझे बाण से ये प्रश्न बड़े हैं,

उत्तर दो शिखर विकल खड़े हैं।

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मंगलवार, 10 जनवरी 2023

415-कई विधाओं से अलंकृत मत्रमुग्धा

 अनिमा दास

           कवयित्री डॉ. कविता भट्ट जी का परिचय इतना विस्तृत है कि मेरी लेखनी में समा नहीं पाती। सम्यक् रूप में यह कहूँगी कि कविता जी योग शास्त्र एवं दर्शन शास्त्र में विशारद हैं। संप्रति वह केंद्रीय विश्वविद्यालय, उत्तराखंड में कार्यरत हैं। उनकी लेखनी समाज की भित्ति को उत्कृष्ट करने हेतु सदैव तत्पर रहती है। प्रत्येक पीढ़ी के लिए साहित्य के माध्यम से अनवरत निष्ठा सहित कार्यरत कवयित्री स्वयंसिद्धा है।

 


उनके कई विशेष संग्रहों में से मंत्रमुग्धा एक काव्य संग्रह है। यह संग्रह कविता की कई विधाओं से अलंकृत है। कविता जी कहती हैं कविता मन की अभिव्यक्ति होती है एवं इसका संप्रेषण केवल भावप्रवणता में होता है। इस संग्रह में छंदमुक्त एवं छंदबद्ध कविताएँ तथा क्षणिकाएँ, हाइकु,ताँका,चोका भी पृष्ठबद्ध हैं।

सभी रचनाएँ जितनी संवेदनशील हैं उतनी ही ऊर्जापूर्ण एवं सकारात्मक भी हैं। उन्होंने कई सुन्दर उपमाओं , शब्द बिंब एवं यथार्थ से उभरते कल्पनात्मक भावों से अभिसिक्त प्रत्येक रचना को मृदुल स्पर्श दिया है। कविता मनोद्गार को परिप्रेषित करने का कोमल माध्यम  होती है। जब पीड़ा अपनी परिधि से वहिर्भूत होती है तब ज्वार सी.. उफनती नदी सी धैर्य का तटबंध ध्वस्त कर देती है। तभी कविमन अभिप्रेरित होता है... विह्वल हो उठता है एवं रच जाती है...समय शिलाओं पर हृदय आख्यायिका... पूर्ण-अर्धपूर्ण पंक्तियों में।

'मंत्रमुग्धा' वास्तव में पाठकों को मंत्रमुग्ध करती रचनाओं से परिपूर्ण है। योगशास्त्र एवं दर्शन शास्त्र की विदुषी की कविताएँ दार्शनिक तत्त्व से परिपूर्ण हैं।प्रथम कविता की कुछ पंक्तियाँ इस प्रकार हैं..

"किसी तथाकथित सम्बन्ध की

उस मरुथल हुई भूमि पर

न तो उद्गम होता है

संवेदनाओं की किसी नदी का

न ही झरने बहते हैं

भावों के कलकल गुनगुनाते

फिर भी न जाने क्यों

विचरती हूँ - प्राय

स्मृतियों की पैंजनियाँ पहनकर

बजाती हूँ तर्कों के घुँघरू

रचती हूँ आदर्शों के गीत"

 

मन में आलोड़ित, संघर्षरत भावों को वेदनाओं के चक्रव्यूह से मुक्त करके उसे शाब्दिक रूप देना एवं प्रत्येक नारी मन की भाषा को परिभाषित करना कितना कठिन है यह उपर्युक्त पंक्तियों में परिलक्षित हो रहा है।

अन्येक कविता 'तुझे निहारूँगी चुप -सी -नदी ' में  कविता जी कहती हैं :

"रोना तो बहुत चाहती हूँ

हाँ, फिर भी रोऊँगी नहीं।

क्योंकि सुना है — लोग कहते

रोना कमजोरी की निशानी

चाँद को निहारते हुए सीखा है

हर शाम उगने का हुनर —

अपना टेढ़ा मुखड़ा लेकर

अब चाँद पूनम का हो या

पहली रात का सहमा सा

चाँद तो चाँद ही है।

काश टेढ़े मुँह वाले चाँद की सच्चाई

लोग समझ पाते।"

इन पंक्तियों की गहनता में यदि लीन हो जाए पाठक तो एक संवेदनशील उपकथा से साक्षात्कार होगा। किसी भी  दृष्टिकोण से देखा जाए तो कवयित्री ने अद्भुत् रूपक दिया है हृदय की अस्पृर्श्य व्यथा को।

पृष्ठ 39 की कविता 'तुम मुक्त हो' छायावाद शिल्प का एक जीवंत उदाहरण है। स्वयं की सत्ता से मिलना एक साधना है। किसी और की दृष्टि में स्वयं को पाना, विचारमुक्त उक्ति भी नहीं है। बहुत सुन्दर एवं सार्थक सृजन है यह कविता।

वैसे ही पृष्ठ 45 की कविता मन 'अभिमन्यु' एक सकारात्मक चिंतन का वह युद्ध क्षेत्र है जहाँ प्रत्येक मन युद्धरत है कई परिस्थितियों के साथ। किंतु अविजित रहता है अंत में।

पृष्ठ 52 की कविता 'कामयाबी भिखारन हुई' एक आशा की किरण जगाती है तो पृष्ठ 53 की कविता 'अब अरुणोदय होगा ' अनेक अभिलाषाएँ एवं आशाएँ लिए कैसे प्रतीक्षारत मानवीय भावना प्रतिदिन एक नूतन ऊषा के लिए संघर्ष करती है... यह चित्रित करती है।

 

 'अमृत धार' के 30 हाइकु जीवन दर्पण हैं । प्रत्येक हाइकु में जीवन की प्रत्येक स्थिति का अति सरल विचार में समाधान दृष्ट होता है।

गाँव की प्रकृति में आधुनिकता के कारण जो परिवर्तन हुआ है.. उसका चित्रण अति अल्प शब्दों में करना कितना कठिन होता है.. परंतु कवयित्री ने इस वेदना को... इस अनसुलझी स्थिति को यथावत जीवित रखते हुए पाठकों को विचार करने का अवसर दिया है।

क्षणिकाओं में जैसे पीड़ा की अनंत यात्रा का दृश्यांकन है। प्रत्येक क्षणिका जैसे आत्मा को स्पर्श करती हुई समस्त व्यथाओं को पी जाती है। मानवीय प्रेम, इच्छा, विरह, आशा, उद्देश्य ।जीवन लक्ष्य से पूर्ण यह क्षणिकाएँ वास्तव में कवयित्री की संवेदनशीलता को दर्शाती हैं।

चोका में प्रत्येक रचना भाव विह्वल करती हुई गहराई में पहुँचती है। मेरे पाठक मन को सिक्त करती हुई ये समस्त रचनाओं ने मेरे स्नायुओं को अनियंत्रित किया है। ये रचनाएँ गहन अभिव्यक्ति का अनन्य वर्णन है। साधारण मानव मन की व्यथा, यंत्रणा, अभीप्सा, आलोड़न, अपूर्ण आशा, इत्यादि को पूर्ण आकार एवं शब्द दे रहीं हैं ये रचनाएँ।

'मंत्रमुग्धा' कवयित्री कविता जी की विकसित भावनाओं की एक काव्य वाटिका है जहाँ हम पाठक अपनी अपनी समस्याओं का , सामाजिक संघर्षों का ,  आत्मिक पीड़ा का समाधान ढूँढ लेते हैं। सहज शब्द, सरल भाषा, समग्र विश्व को एक ही विचार धारा में देखने का दृष्टिकोण इस संग्रह का अलंकार है.... आभूषण है।

आवरण पृष्ठ पर पर्वत पंक्तियाँ, नीलांबर तथा रक्तिम पुष्पों से अच्छादित वृक्ष एवं आत्मलीन कवयित्री... वास्तव प्रकृति की जीवंतता का यह दृश्य अति रमणीय है।

अनन्य संग्रह है 'मंत्रमुग्धा' ... मानवीय जीवन का स्वच्छ दर्पण है..। कवयित्री डॉ. कविता जी को हृदय गह्वर से शुभकामनाएँ एवं इस संग्रह को उत्कृष्ट पाठकीयता प्राप्त हो इसी मंगलकामना के साथ...

मंत्रमुग्धा (काव्य -संग्रह): डॉ.कविता भट्ट 'शैलपुत्री',  प्रथम संस्करण -2022, पृष्ठ – 104,मूल्य - ₹260

प्रकाशक - शैलपुत्री (शैलपुत्री फाउंडेशन )

 

 

 

शुक्रवार, 6 जनवरी 2023

414-अनुशासन नदी का

डॉ. कविता भट्ट 'शैलपुत्री'

बलिष्ठ हैं

तटबंध की भुजाएँ

यह कहना -

उतना ही झूठ है

जितना यह -

कि सूरज ने

उगने को मनाही कर दी

बादल हों; भिन्न विषय है

ठीक वैसे ही

नदी तय सीमा में

बह रही है

इसका यह अर्थ कदापि नहीं

कि तटबंध बलवान हैं

धन्यवाद कहो नदी को

कि वह संलग्न है

कर्त्तव्य- निर्वाह में

और अनुशासित है;

लेकिन युगधर्म है कि

नदी का अनुशासन

मान लिया गया सदियों से

उसकी दीनता का प्रतीक,

और तटों को

दे दिया गया

अधिकार बाँधे रखने का

अकारण ही

है ना दुराग्रह और धृष्टता!!

-0-