बुधवार, 12 नवंबर 2025

514- आना तू आना प्रिय!

 

लेखन-रजतजयंती पर


आना तू आना प्रिय! /  डॉ. कविता भट्ट 'शैलपुत्री'

 


आना तू आना प्रिय!

मुट्ठी भर गर्मी लेकर

मेरे अधर की मंद स्मित

जीवन के बीहड़ में

विलीन होने से पूर्व

विरह सिसकती निशा में

शून्य होती दृष्टि दिशा में

आना तू आना इस शिशिर

मुट्ठीभर गर्मी लेकर

शरद जो निष्क्रिय सा

खड़ा है पाने को उत्साह

हटाना तू कुहासे की परत


मेरे विकल जिया से

उष्णता जो करती है प्रसार

असीम ऊर्जा का;

कैसे और किसको व्यर्थ बताना

यह वासना नहीं; अपितु

आत्मीय भाव से पूर्ण प्रेम

जग की रीति क्या जानेगी

विद्युत की प्रबल तरंगों- सा

उन्मुक्त उन्नत उदात्त

आया तू आया

आह! चम्पा का फूल लिये

सुंदर फूल जो सजाना है तुझे

मेरी उन्मुक्त उलझी- सी घुँघराली लटों में

आया तू आया प्रिय!

मुट्ठी भर गर्मी लेकर

 

12-11-2025

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4 टिप्‍पणियां:

  1. प्रकृति और प्रेम को एक साथ लेकर चली है कवियत्री। सुन्दर भाव

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  2. प्राकृतिक संवेदनाओं और अनुभूतियों का सुन्दर चित्रण कविता भट्ट जी के काव्य में अकसर मिलता है, जो उनकी खासियत भी है, हार्दिक शुभकामनाएँ कविता भट्ट जी! आप स्वस्थ्य रहे, प्रसन्न रहे, लिखती रहे।

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  3. छायावादी काव्य-सी विरह -मिलन की सुंदर अभिव्यक्ति।

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  4. प्रकृति और प्रेम का सुंदर चित्रण-शुभकामनाएँ।

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