अनुपमा त्रिपाठी
1
चहक उठती है
मन की चिड़िया 
महक उठती है
मन की बगिया
खिल उठता है
घर का कोना-कोना
जी उठता है
मन का कोना -कोना
बन जाती हूँ बच्ची मैं जब 
घर आते हैं बच्चे 
लौट आता है बचपन मेरा 
संग होते जब बच्चे 
है ये बच्चों का बचपन 
या मेरा बचपन 
या मेरा बचपन दोहराता हुआ 
मेरे प्यारे बच्चों का बचपन 
माँ -माँ करता गुंजित कलरव 
अमृत- सा
दे जाता है 
पीकर इसका प्याला 
मन हर पीड़ा दूर भगाता है 
खो जाती हूँ रम जाती हूँ 
छोटी सी इस दुनिया में 
घर फिर घर सा लगता मुझको 
घर आते जब बच्चे!!
2
कुछ बूँद अविचल
नयनों में बचाकर
कुछ अभिनंदन अजेय 
स्वरों में रचाकर
पल अनमोल
जी लिये ऐसे
,
जैसे सावन की हरियाली में
मेहँदी
की लाली में
जीती है हरियाली ज़िन्दगी ...!!

 
दोनों कविताएँ सुंदर, अनुपमा जी को हार्दिक बधाई!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर कविताएँ, हार्दिक शुभकामनाएँ ।
जवाब देंहटाएंवाह... बहुत सुंदर कविताएँ
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर कविताएँ
जवाब देंहटाएंहार्दिक बधाई आदरणीया
सादर
बहुत सुंदर कविताएँ।हार्दिक बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचनाएँ ...हार्दिक बधाई।
जवाब देंहटाएंहर्ष का संचार करती सुंदर रचनाएँ। बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचनाएँ, बधाई अनुपमा जी.
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