रिश्ते
प्रो0 इन्दु पांडेय खण्डूड़ी
रोजमर्रा की आपाधापी
 रिश्तों के गुणाभाग,
 भावों के जोड़ घटाव
 अद्भुत से घटते संयोग ।
 लगाव के नाम पर,
 अलगाव के भूभाग,
 प्रेम की आस में,
 खंडित विश्वास ।
 मधुर संगीत की धुन
 मुस्कराहट ओढ़े,
 मशीन बन चुके
 अपने ही तर्क बुने।
 अंतर्मन के उलझे,
 अनमने जज्बात
 जीने के लिये कुछ,
 जरूरी सी बात ।
 टूटती हुई गिरती
 सहारे की दीवारें
 बेचैनी की बारिश
 सुकून खोजती निगाहें।
 उथल पुथल से,
 सराबोर, ये पल
 अनजान, अनिश्चित
 अनवरत से छल ।
 फिर भी हम और तुम
 व्यस्तता से भरे,
 राह खोजते रहे
 कुछ मुस्कराहट के पल।
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अच्छी रचना, बधाई
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
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