शनिवार, 3 जून 2023

458-स्कूल जाते बच्चे

 अन्नू मैंदोला (उत्तराखण्ड)

 


स्कूल जाते बच्चे

चले जाते हैं

अनजाने ही

सीधे बाघ के

मुँह में

 

शिक्षा का परचम

लहराने की बजा

बन जाते हैं

खौफ और मातम

का माध्यम

 

लेकर लौटते हैं

वहशी जानवरों

के नाखूनों के

निशान अपने

जिस्म पर

 

अतिक्रमण हुआ हो

शायद जंगलों पर

इंसानी बस्तियों का,

 

तमाम कोशिशों

के बावजूद

कुछ अँतडियाँ

पचा ली जाती हैं

 

बाकी बचे बच्चे

जाते रहते हैं स्कूल

शिक्षा की बाहें थामे

निडरता और खौफ

के सम्मिश्रण के साथ।

 

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11 टिप्‍पणियां:

  1. अन्नू मैंदोला की गहन अर्थ से सजी कविता के लिए हार्दिक बधाई!

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  2. बहुत सुन्दर, हार्दिक शुभकामनाएँ ।

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  3. बहुत ही सारगर्भित।

    हार्दिक बधाई

    सादर

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  4. सुदूर अंचलों में बच्चों को शिक्षा हेतु घर से निकलना भी इतना खौफनाक है यह कल्पना भी भयभीत करती है।एक गम्भीर समस्या को इंगित करती प्रभावी कविता।कवयित्री को शुभकामनाएँ

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  5. सुंदर सारपूर्ण रचना...हार्दिक बधाई।

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  6. बहुत ही मार्मिक और करुणामय पढ़कर आंसू आ गये | श्याम -हिन्दी चेतना

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  7. सूदूर प्रांतों के बच्चों के संघर्ष की भावपूर्ण अभिव्यक्ति। बधाई अन्नू जी

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  8. सच्चाई से रूबरू कराती रचना ,बधाई।

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