निर्दिष्ट दिशा में (सॉनेट )
अनिमा दास
सॉनेटियर
कटक, ओड़िशा
एक संकेत सा.. एक रहस्य
सा.. काव्य प्रेयसी के घनत्व में
रहते हो तुम, हे कवि! तुम अनंत रश्मियों का हो एक बिंदु
नहीं होते जब तुम
परिभाषित अनेक शब्दों में.. अपनत्व में
नक्षत्रों में होते तुम
उद्भासित बन संपूर्ण अंतरिक्षीय सिन्धु
मेरे जैसे कई कहते हैं
तुम लघु में हो वृहद.. वृहद में अनंत
जब घन अरण्य में चंचल
होती चंद्र-किरण, मैं कहती हूँ
कविवर के शब्द पंच रूप
से हो निस्सृत सप्त अक्षर पर्यंत
पुनः पंच रूप में होते
आबद्ध, मैं उस चित्रकल्प में रहती
हूँ
प्रत्येक छंद में संचरित
प्राण.. तमस में भी होता आलोकित
यह प्रकाश.. यह
निर्झर..शैलशीर्ष की यह लालिमा समस्त
करते प्रश्न.. कहो कवि
कैसे तुम वर्णमाला को किए जीवित
क्या ये वही अर्ण हैं, जो तुम्हे किया है पाठक हृदयाधीनस्थ?
तुम्हारे अवतरण से
महार्णव की शुभ्र-उर्मियाँ हुईं काव्यमय
हुई महीयसी, कथा हुई संपूर्णा..प्रस्फुटित हुआ किसलय।