गुरुवार, 1 जुलाई 2021

255-प्रेम

 साईनी कृष्ण उनियाल


प्रेम पूजा है, भक्ति है, सुमिरन भी है


मन के मंदिर का दीपक
, ये कीर्तन भी है

माँ की ममता के आँचल  की छाया भी है

पितृ वात्सल्य पूरित ये माया भी है

दिल से दिल जोड़ दे ये वो बंधन भी है

भाव भक्ति के अश्रु का क्रंदन भी है।।

प्रेम पूजा----

दु:ख से व्याकुल हुए मन की पीड़ा भी है

रूप- रंग में रंगे पट की वीणा भी है

ये मिलन की खुशी ये विरह की घुटन

वन में नाचे मयूरों के पग की थिरकन।।

प्रेम पूजा----

न है भाषा कोई, न कोई बोल है

विधि की रचना बड़ी ही ये अनमोल है

ज्ञान से भी परे ये अजब ध्यान है

विष को पीले जो मीरा ये अमृतपान है।।

प्रेम पूजा---

प्रेम की न ही जाति न पहचान है

भावनाओं का सुंदर ये संसार है

कान्हा के जीवन का भी तो यही सार है

मुरली की धुन पे रिझाया सारा संसार है।।

प्रेम पूजा---

धरती, अंबर में है और समंदर में भी

प्रेम की भावना जग के कण-कण में है

सृष्टि में जीवन का ये ही एक आधार है

प्रेम बिन प्राणी जीवन निराधार है।।

प्रेम पूजा है----

-0- श्रीनगर (गढ़वाल),उत्तराखण्ड

 

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