गुरुवार, 28 सितंबर 2023

477-अतृप्ता संग्रह से

 

लिली मित्रा

 



1- प्यार को पूर्णता कहाँ ?

 

क्या होगा

जब हमारा प्यार

अंतर्मुखी हो जाएगा ?

रस्मों रिवाज़ों से

हो मजबूर दूर से ही

प्रीत की उष्मा पाएगा,

कोई राह तुम तक

नहीं पहुँची होगी,

बस कल्पनाओं में ही

अपनी मंज़िल पाएगा,

 

मन घर का कोई

ऐसा कोना खोजेगा,

जहाँ कोई और

न आएगा जाएगा,

आँखें मूँदकर

फिर तुम्हारी यादों का

बटन दबाएगा,

मानस पटल पर

कल्पनाओं का

 स्क्रीन सेट करेगा,

 

उस पर उभरेंगे

वो सजीव से चलचित्र

जिसमें हमारी

अभिलाषाएँ और

इच्छाएँ मेरे निर्देशन में

अभिनय करती नज़र आएँगी,

शुरुआत से

अंत सब मेरे मुताबिक़

घटित होगा,

हाँ तब तक मैं

 बहुत परिपक्व हो जाऊँगी,

 

तुम्हें पाने की चाह को

 मन में छुपाकर,

 सबके साथ पूर्णता से

जीना आ जाएगा

किसी की पुकार पर

अचानक उसे बंद कर

 दिया जाएगा,

 कुछ बिखरे कामों को

समटते हाथ,

पर मन उन्हीं लम्हों को दोहराएगा,

 

कोई शब्द  तुमसे जुड़ा

कानों मे गूँज जाएगा,

 लिखे अल्फ़ाज़ में

तुम्हारा चेहरा नज़र आएगा,

 'बातों का समय' तब भी

यादों का अलार्म बजाएगा,

प्यार को पूर्णता कहाँ

यह सत्य भली-भाँति समझ आ जाएगा ।

-0-

2-न जाने कैसा हो मेरा अवसान

 

मैं गुजरते वक़्त के दरख्तों पर

कुछ कोपलें लम्हों की रख आती हूँ....

न जाने कैसा हो अवसान मेरा मैं

 खिड़कियों के क़रीब

बड़े पेड़ों की पंगत गोड़ आती हूँ...

 

बरसाती मौसम की लाचारी भाँपते हुए

देखती हूँ चींटियों को अथक,

एकजुट दाना जुगाड़ते हुए ...

यही सोच मैं भी

सुनहरे दानों का जुगाड़ करती हूँ...

 न जाने कैसा हो अवसान मेरा

 मैं दिल के गोदाम में

यादों के भोज्य पहाड़ करती हूँ....

 

दीवारें कमरों की रंगीन ही सही

 मगर छतों की कैनवस सफ़ेद ही रखती हूँ

न जाने कैसा हो अवसान मेरा

सीधे लेटकर उकेरने के लिए

कुछ तस्वीरें करीबी...

मैं आँखों में बहुरंगी जमात

 रखती हूँ....

-0-


अतृप्ताः
  लिली मित्रा, पहला संस्करण : 2019, पृष्ठः 116, मूल्य : ₹200 $8, -0-ISBN: 978-93-87464-37-7 पहला संस्करण : 2019, पृष्ठः 116, मूल्य : ₹200 $8, -0-
ISBN: 978-93-87464-37-7, प्रकाशक :हिन्द-युग्म ब्लू,  201 बी पॉकेट ए, मयूर विहार फेस-2, दिल्ली- 110091

Email : sampadak@hindyugm.com

Website : www.hindyugm.com

2 टिप्‍पणियां:

  1. 'अतृप्ता' संकलन की रचनाओं को नीलम्बरा में स्थान देनें के लिए आदरणीया डाॅ कविता भट्ट जी को हार्दिक आभार एवं धन्यवाद व्यक्त करती हूँ।

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  2. मैं गुजरते वक़्त के दरख्तों पर
    कुछ कोपलें लम्हों की रख आती हूँ....
    न जाने कैसा हो अवसान मेरा

    वाह ! अति सुंदर कविताएँ। बधाई अतृप्ता

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