सोमवार, 14 अगस्त 2023

472-आनन्द वहीं है

 डॉ. कविता भट्ट 'शैलपुत्री'

 


मैं अपरिचित अनगढ़ दिक् पथ पर,

संग सत् चलने दो - आनन्द वहीं है।

 

विकट युवा अँधेरा, प्रकाश हो मंथर

तो उड्डयन टलने दो- आनन्द वहीं है।

 

रुष्ट स्वजन, क्रूर, कुंठित जग जर्जर

ये अश्रु निकलने दो- आनन्द वहीं है।

 

यदि प्रतिशोध खड़े हों विविध रूप धर

दीर्घायु मौन फलने दो- आनन्द वहीं है।

 

अवकाश रहित हो  द्रुत, अंध युग निडर

जो छले हिय, छलने दो- आनन्द वहीं है।

 

पिय विकल आलिंगन, हों पिपासु अधर

तीव्र प्रेमाग्नि जलने दो - आनन्द वहीं है।

 

साहस शिखर सा दृढ़ हो, प्रज्ञा प्रखर

तो प्रेमांकुर पलने दो - आनन्द वहीं है।

 

श्वेत केशराशि, निर्जन वन ज्यों निर्झर

निज यौवन ढलने दो - आनन्द वहीं है।

-0-(रचना-28-05-2023)

 

1 टिप्पणी:

  1. साहस शिखर सा दृढ़ हो, प्रज्ञा प्रखर
    तो प्रेमांकुर पलने दो - आनन्द वहीं है।

    श्वेत केशराशि, निर्जन वन ज्यों निर्झर
    निज यौवन ढलने दो - आनन्द वहीं है।

    अप्रतिम सृजन...

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