रविवार, 5 फ़रवरी 2023

426-दोहे

  डॉ. उपमा शर्मा

1

कदमों को मैं चूम लूँ, अधरन बनूँ सुहास।

बिछूँ तुम्हारी राह में, बनके फूल सुवास

2

बातों से तेरी मिले, शीत-पवन अहसास।

हँस दे तो ऐसा लगे, फूल झरे हों पास।

3

आकर देखो ये करें, कितना रोज़ निहाल।

मुझसे क्यों रुकते नहीं,तेरे कभी ख़याल।

4

हाथ छुड़ाके जब गया, वो मेरा चितचोर।

नयन- कुंज के नीर में, फिर सुधियों का शोर।

5

 नहीं खिसकते क्यों कभी , यादों- भरे पहाड़।

उतनी तेरी आहटें, जितने बंद किवाड़।

6

तुमसे मेरा मन जुड़ा, तुम ही अब संसार।

बाँटो तुम सुख-दुख सदा, बाँटे ज्यों परिवार।

7

स्वाति के बिन पपीहरा , लेता आँखें मूँद।

प्यासा कितना भी रहे, पि न जल की बूँद।

8

कहीं रहूँ ,भूलूँ नहीं, हूँ उदास या शाद।

आती हर पल क्यों मुझेबस तेरी ही याद।

9

 निश्छलता जिसमें मिले, उस दिल की है आस।

जिससे मन मैं खोल दूँ , करूँ सहज विश्वास।

10

 अपने दिल पर ध्यान दो ,हर पल आठों याम।

 रखना बहुत सहेजकर, मेरा है यह धाम।

11

जबसे इस मन तुम बसे , सुरभित है परिवेश।

मन-नभ दिनकर प्रेम का, फैलाए संदेश।।

12

कोरे उर के पृष्ठ पर, लिखे प्रीत के गीत।

जब से नयनों में बसे,तुम मेरे मन-मीत।

13

उर -वीणा के राग में, तेरा ही अनुनाद।

कितना भूलूँ मैं मगर, आती तेरी याद।

14

नयनों ने कह दी सखी, नयनों की यह बात।

नयन बंद कर सोचती, प्रिय को मैं दिन-रात।

15

चंचल नयन निहारते, तुझको ही सब ओर।

तुझ बिन कैसे हो पिया, जीवन की यह भोर।

16

नयनों में आँसू भरे ,अटके पलकन ओट।

छलकें जब यह याद में, दिल पर करते चोट।

17

उर- वीणा के तार हो, अनहद हो तुम राग।

सात सुरों की साधना, यह अपना अनुराग।

18

साँसों की सरगम रहे, अधरों पर हों गीत।

चन्द्रकलाओं-सी बढ़े, अपनी पावन प्रीत।

19

तुम जो मुझको हो मिले, खिले ख़ुशी के रंग।

ख़ुशबू का झोंका बहे, जैसे समीर संग।

20

पोर-पोर में पुष्प के, ज्यों बसता मकरंद।

प्रेम करे पा वही ,अन्तर्मन में छंद।

21

तुम बिन सूना सब रहा, सूने सारे राग।

तुम जब उर में आ बसे, मन हो जा फाग।

22

पिया सलोने सुन ज़रा,क्या है तुझमें  राज़।

पंख बिना भरने लगी, देखो मैं परवाज़।

23

मन को बरबस बाँधती, नेह-प्रेम की डोर। 

मन-अँगना आई उतर, खींचे तेरी ओर।

24

पथ सारे महके लगें, मन में उठे हिलोर।

दो दीवाने जब चले, प्रेम -डगर की ओर।

25

 दूर फिज़ाओं में घुले, शोख़ प्रेम के रंग।

धरती-अम्बर से मिले, जब हम दोनों संग।

26

लिखती तुझ पर काव्य जब,चुरा पुष्प से रंग।

छलक- छलक जाती तभी, मन में भरी उमंग।

27

लाख छुपाने से कभी , छुपे नहीं जज़्बात।

व्याकुल नैना कह रहे, मन की सारी बात।

28

बंधन मन के जब जुड़ें, कहाँ रहे फिर होश।

आँखें ही तब बोलतीं,अधर रहें ख़ामोश।

29

तुमसे ही ये मन जुड़ा, दूर रहो या पास।

सुधियाँ  देती हैं मुझे ,मोहक मधुर सुहास।

30

उल्टी नैया प्रेम की, उल्टी इसकी रीत।

जो डूबा सो पार हो, ऐसी होती प्रीत।

31

जीवन में अब आ घुले , मोरपंख से रंग।

ख़ुशियों से आँचल भरा,जब तुम मेरे संग।

32

तेरे-मेरे बीच का, बंधन है बस नेह।

मन तुझसे मंदिर हुआ,आँखें तेरा गेह।

33

तुमसे ऐसे है जुड़ा, मन का ये संबंध।

फूलों में जैसे बसी  ,मोहक-मधुर सुगंध।

34

 हिय में हो तुम ही बसे,आये नैनन द्वार।

पढ़ लो मुखड़ा साथिया, ये ताजा अख़बार।

35

दीप जलाती नेह का, हर पल आठों याम।

कुटिया-सा तेरा हिया, मेरे चारों धाम।।

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2 टिप्‍पणियां:

  1. प्रेम में पगे सुन्दर, भावपूर्ण दोहे।
    हार्दिक बधाई आदरणीया 💐🌷🌹

    सादर

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  2. बहुत सुन्दर भावपूर्ण दोहे हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ।

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