शनिवार, 24 दिसंबर 2022

412-हथेली बिछाई तुमने

डॉ. कविता भट्ट 'शैलपुत्री'

 

हथेली बिछाई तुमने,

मैंने लहराके डग भरे।

सपनों की झूम खेती,

अब करने को पग धरे।

 

कल्पतरु- से तुम खड़े,

अपराजिता हो उर मिली।

मंद - मंद मुस्काती हुई-

पुष्पित सुरभित हर कली।

 

संजीवनी- सा संग हुआ,

मिलन समय से है परे।

नयन मूँदे क्षण पड़े हैं -

अधर- अधर पर धरे।

 

तुम घुल गए हो मुझमें,

मृदु- पहाड़ी संगीत- से।

नदी -सी उन्मुक्त बहती

प्रवाह है तुम्हारी- प्रीत से।

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