शुक्रवार, 30 अप्रैल 2021
बुधवार, 28 अप्रैल 2021
सोमवार, 26 अप्रैल 2021
शनिवार, 24 अप्रैल 2021
220-मन का द्वार
गढ़वाली में अनुवाद : ,डॉ.कविता भट्ट 'शैलपुत्री'
1-सुदर्शन
रत्नाकर
1
स्वर्ण कलश
सजा आसमान में
भोर हुई तो।
सोना कु घौड़ू
सजी ग्याई द्योरा माँ
बिन्सरी ह्वे त
2
चाँदनी रात
खिली मधुमालती
दूध-केसर।
जुनाळि रात
खिली मधुमाळती
दूध -केसर
3
तुहिन कण
गिरते दूब पर
ज्यों मोती बन।
ओंसा क बुन्द
दुबला माँ पड़िन
मोती बणिन
4
ताल सज़ा है
खिले लाल कमल
छुपा है जल।
ताल सज्यूँ च
खिल्यन लाल कौंळ
लुक्यूँ च पाणी
5
अम्बर थाल
ओढ़े चाँदनी शाल
धरा मुस्काई।
द्योरै थकुली
ओढ़ि जुनाळि पाँख्लु
पिर्थी हैंसी गे
6
रात रोई थी
धरती ने समेटे
उसके आँसू।
रात रूणि छै
पिर्थी न समोख्यन
वीं का इ आँसु
7
रास्ता है देती
दूब सिर झुकाती
मिट न पाती।
बाठु च देणु
दुब्लू सीस झुकौंदु
मिटदु नि च
8
धरा ने ओढ़ी
ज्यों पीली चुनरिया
सरसों खिली।
पिर्थी न ओढ़ि
जन पिंगळी चुन्नी
लय्या खिली गे
9
धूप ज्यों सोना
खिला अमलतास
मेरे अँगना।
घाम सोनु सि
खिली अमलतास
म्यारा चौक माँ
10
चुप खड़े हैं।
ढाक-अमलतास
रोके ज्यों साँस।
चुप्प खड़न
पलास अमल्तास
रोकी कैं साँस
11
सिन्धु लहरें
करें अठखेलियाँ
चाँद बुलाए
समोद्री लैर
कन्नीन खेल बोल
जून बुलौणि।
12
सागर जल
दूर तक विस्तार
फिर भी प्यास।
समोद्र पाणी
दूर तकैं फैलास
फीर बी तीस
-0-
2-नन्दा
पाण्डेय
1.
मन का द्वार
बन स्मृति उत्सव
खींचता ध्यान
मन कु द्वार
बणि खुदौ तिवार
खैंचदु ध्यान
2
याद तुम्हारी
प्रतिपल नूतन
स्पंदन रत
खुद तुमारी
घड़ि-घड़ि नैं बल
गिडारु जन्न
3
बच्चों की आँखें
खोजती रही चाँद
नींद माँगते
बाळौ का आँखा
खुजौणा रैं जून
निन्द माँगणा
-0-
शुक्रवार, 23 अप्रैल 2021
219- इतना प्यार
1-डॉ.कविता भट्ट 'शैलपुत्री'
2-परमजीत कौर 'रीत'
1
सिंदूरी सूर्य
धरा को रँगकर
खेलता फाग
सिंदुरि सुर्ज
पिर्थी रंगै कैं बल
खेलदु फाग
2
निशा- चूनरी
चन्द्रमा रँगरेज
चाँदनी रँगे
रात च चुन्नी
जून रंगण वाळि
जुनाळि रंगु
3
पूर्णिमा-चाँद
सागर-मन ज्वार
कल्पों का नेह
पूर्णिमैं जून
समोद्र मन ज्वार
कलप्वी माया
बुधवार, 21 अप्रैल 2021
218-भाषान्तर
डॉ.कविता भट्ट 'शैलपुत्री'
भाषांतर[सम्पादन]
सोमवार, 19 अप्रैल 2021
शुक्रवार, 16 अप्रैल 2021
सोमवार, 12 अप्रैल 2021
शुक्रवार, 9 अप्रैल 2021
बुधवार, 7 अप्रैल 2021
मंगलवार, 6 अप्रैल 2021
रविवार, 4 अप्रैल 2021
शनिवार, 3 अप्रैल 2021
208-मल्लयुद्ध
(गढ़वाली कविता)
एक बार टोपलि अर,
जुत्ता मा तकरार ह्वै।
माभारत छिड़ि बीच,
बाण्याँ बाणू प्रहार ह्वै।
देणु-बयुँ मिलि जुली,
घौ छा कना गैरा-गैरा,
कळ्दरू फ़ौज तैयार,
तब चौतर्फ्या वार ह्वै।
त्वै जन पच्चीस बिकदा,
हमारि एक जोड़ि मा।
हस्ति तेरि कुछ बि नी,
तु त धर्ति पर भार ह्वै।
स्याळ्यूँ का सारा हमै रैंदा,
ब्यौ मा पैसा ऐंठण मा।
सूणि कबि कि टोपलि लुकै,
कैकि दगड़ि तुड़ै पार ह्वै।
टोपलि चुपचाप रैकि,
ये चीरहरण देखणी छै।
दुर्जोध जुत्ता चाल चल्या,
अर टोपली हार ह्वै।
पर वै हि टैम कैकि टोपलि,
उछाळि ऐंच असमान मा।
लड़ै परचंड ह्वैगि तब,
जनता तक मारम-मार ह्वै।
जुत्ता तैं जबाब मिली,
जब टोपल्या बाना लड़ै ह्वै।
टोपलिन बोलि जुत्ता देख,
अब जादा न होश्यार ह्वै।
इज्जतै जब बि बात हुंदि,
तब मैं हि गिरवि रख्यै जंदि।
तेरि जगा खुट्टों मा हि च,
तेरा सारा कैकु करार ह्वै?
आज बि हाल वनि छन,
टोपली क्वै गिन्ति गाण नी।
जुत्तों कि पौंछ मंदिर तक
अर संसदा तक बि पार ह्वै।
टोपली कीमत सिक्कों न लगा,
वीं तैं मान अर सम्मान द्या।
जुत्ता कै कीमती बि होला,
पर वैकु सिर्वानु कबार ह्वै।
-0-