शनिवार, 16 नवंबर 2019

मैंने उम्र गुज़ार दी..


डॉ.कविता भट्ट 'शैलपुत्री'

बिल्कुल आसान था
नागफनी उगाना
मगर मैं न उगा सकी।
मेहनत का काम था;
फूल उगाना
मगर क्या करूँ ?
मुझे फूलों से प्यार इस क़दर था
कि दिल की ज़मीं सींचने में
मैंने उम्र गुज़ार दी।
मुस्काते फूलों को रौंदकर
वे ख़ुद को बागवान कहते रहे।
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2 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर रचना जो ऐसा करे वो कैसा बागबां जो फूलों की हसरत को निचोड़ दे बधाई डॉ कविता भट्ट जी को

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