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गुरुवार, 28 मार्च 2019

किसी के दिल में रहूँगी

किसी के तो दिल में रहूँगी,
माना कि नज़र में नहीं रहूँगी।

यह न हुआ तो दिमाग में रहूँगी,
मुझे यक़ी है मैं बेघर नहीं रहूँगी। 

चार दिन उदासी के निकल जाएंगे
पता है, उदास मैं उम्र भर नहीं रहूँगी।

उन्हें ज़िद है यह गुलशन सुखाने की, 
मगर मैं तो बहार हूँ, बंजर नहीं रहूँगी।

प्यार, मुहब्बत-इबादत, शब्द तो नहीं, 
ख्यालों में उनके मुख़्तसर नहीं रहूँगी। 

शिकायतें बहुत हैं उन्हें यूँ तो मुझसे, 
कल तड़पेंगे जिस पहर मैं नहीं रहूँगी। 

फक्कड़ हूँ, मुझे याद करेगी दुनिया, 
माना कल इस सफ़र में नहीं रहूँगी।....शैलपुत्री

मंगलवार, 26 मार्च 2019

सीता परित्याग (सरल भाषा में)

अनिता काला 
सहायक अध्यापिका 
रा.प्रा.वि.जंटाई (बचणस्यूं)
जनपद रुद्रप्रयाग

1_निर्जन वन है,राह कठिन है।
कैसे कटेगें, दिन रैना
कैसे जन्म दूँगी, जातक को
मन को नहीं, मिलता चैना।
2-कैसे जिऊँगी, नहीं सहारा
आज बनी, अबला नारी।
सब कुछ है पर, रूठी किस्मत
रूठ गयी, दुनिया सारी। 
3-लाड़ली थी, मिथिला की कभी में
थी कौशल की, महारानी।
आज हुई, परित्यक्ता जग में 
बहता आँखो, से पानी।
4-मन कर्म वचन से, पतिव्रता थी
फिर भी अग्नि, परीक्षा दी।
मेरे सतित्व को, लेकर जग ने
कितनी गन्दी, गाली दी।
5-कितनी रात, अँधेरी है ये
कितना भयानक, ये पल है।
प्यार से मुझको, वन में भेजा
कितना दर्द, भरा छल है।
6-जाऊँ कहाँ में, समझ न आये
हे! वसुधा अब, राह दिखा ।
तुझसे जन्मी, में भूमिजा
कैसे जिऊँ, माँ मुझे बता।
7-हे! विधना ये कैसी ,मिली वेदना
बिना जुर्म की, मिली सजा।
कैसी फूटी,   पायी 
कैसी है ये, तेरी रजा।
8-इस वन में मेरा, कोई न अपना
कहीं न अपना, ठिकाना है।
अब तो मृत्यु ही, एक सहारा
उसको ही गले, लगाना है।
9-सुनकर सिय की, करुण वेदना
बाल्मीकि जी, दौड़े आये।
चरण छुए, सीता ने गुरु के
पुत्रवती का, वर पाये।
10-रुक जा पुत्री, हिम्मत बाँधो
तुम तो जनक, दुलारी हो।
इक्ष्याकुं वंश की, संतति गर्भ में
तुम श्रीराम की, प्यारी हो।
11-ये तो लेख, विधाता का था
तुम दोनों जो, अलग हुए।
रामायण का, एक प्रसंग ये
भाग्य नें जो ये, दर्द दिए।
12-आज से में तेरा, पिता तुल्य हूँ
मेरी कुटिया, तेरा घर है।
आश्रम वासी, भाई-बहन सब 
पुत्री ये तेरा, पीहर है ।
13-बाल्मीकि आश्रम में, मिला सहारा
घर सा प्यार, दुलार मिला ।
चूल्हा चौका, लकड़ी काटे 
जीनें का, आधार मिला।
14-ऋषि बालाओं के, साथ में सीता 
होती है मन ही, मन खुश।
घड़ी सुख की, फिर लौट कर आई
सीता के जन्मे, लव और कुश।
15-किलकारियों से, आश्रम गूँजा
सीता को खुशियाँ,  अपार मिली।
पुत्रों ने शिक्षा, दिक्षा पायी 
ज्ञान की ज्योति, अखण्ड जली।
16-राम ने यज्ञ का, घोड़ा छोड़ा
जिसको लव कुश, ने पकड़ा ।
नहीं लोटाएगें, इस घोड़े को
दोनों पक्षो में, हुआ झगड़ा।
17-अंत में श्री राम जी, लड़ने आये
पिता पुत्र में, युद्व हुआ।
गुरु संग सीता, भाग के आई
हाय रे!कैसा ये, अनर्थ हुआ।
18-लव कुश से फिर, सीता बोली
ये ही पिता, तुम्हारें हैं।
पुत्रों इनके, चरण छुवों तुम 
ये सारे जग से, प्यारे हैं।
19-राम को लव कुश, सौप कर बोली
ये दो लाल, तुम्हारे हैं।
प्यार से, पालन पोषण करना
ये मेरे, आँख के तारे हैं।
20-स्वीकार करो, प्रणाम नाथ अब 
अंतिम आज, जीवन मेरा।
हे! धरती माँ, मुझे समा लो
कार्य हुआ, पूरा मेरा।   

सोमवार, 25 मार्च 2019

अच्छा है


किसी का ख्याल अच्छा है
किसी का  हाल अच्छा है I

कभी तो  इश्क  में डूबो
किसे मलाल अच्छा है I

कभी जवाब अच्छा है
कभी सवाल अच्छा है I

करिश्मा -  ए- खुदा देखो
पाया जमाल अच्छा है I

ये  हैं रंग मौसम  के
डालों पे माल अच्छा है I

भूख नाचती है  रस्सी  पे
कहें  कमाल  अच्छा  है I

मौहल्ले में नींद हराम है
शादी में धमाल अच्छा है I

@   बाबूराम प्रधान
       नवयुग कॉलोनी दिल्ली रोड 
       बड़ौत (बागपत) उ.प्र. 250611


ढोल की पोल (बलिदान दिवस विशेष)

डॉ. कविता भट्ट  'शैलपुत्री' 
 (जो युवा शिक्षा के मंदिरों में देशविरोधी नारे लगाते हैं उनको आईना दिखाती रचना देशहित में )

बेला आजन्म आजादों की साहब!
खंडित प्रतिमानों के मोल न पूछो
शेखर-चन्द्र रखे आजादी के युग वे     
उनके कैसे गूँजे थे वे बोल न पूछो 

खुली हवा में साँस ली जिन्होंने पहली    
वे अब कहते हैं; ये सब झोल न पूछो
छत पर रखते गमले सुंदर फूलों वाले 
नींव के पत्थर कितने अनमोल न पूछो

राष्ट्र-भावना दम भर तो दम भर ले 
संभावना के दाम और खोल न पूछो
लोकतंत्र- कर्त्तव्य स्वाहा अधिकारों में

अब इस बजते ढोल की पोल न पूछो

गुरुवार, 21 मार्च 2019

अब चेतना रमती नहीं


तुम कहाँ से खोज लोगे,
जब मैं स्वयं में ही नहीं।
विश्व के इन आडंबरों में,
अब चेतना रमती नहीं।

लड़खड़ाते हैं पग मेरे,
वश में कुछ है ही नहीं।
सफलता के शिखरों में, 
अब चेतना रमती नहीं। 

विकल्प पंगु अब बुद्धि के,
संकल्प अब हैं ही नहीं।
विचारों के घने बीहड़ों में, 
अब चेतना रमती नहीं। 

प्रेम निष्ठुर हो चुका है, 
प्रेमिका अब है ही नहीं।
भुजपाश और चुम्बनों में, 
अब चेतना रमती नहीं। 

भस्मीभूत तन हो चुका है, 
उद्दीपिका अब है ही नहीं।
बालसुलभ झुनझुनों में, 
अब चेतना रमती नहीं। 

मन विलग हो चुका है,
संवेदना अब है ही नहीं।
मोह के विष-बन्धनों में, 
अब चेतना रमती नहीं। 



शुक्रवार, 15 मार्च 2019

जब उसने गजल कही


लफ्ज़ लफ्ज सुना गौर से जब  उसने  गजल   कही
अतीत आंखों से होके गुजरा जब उसने गजल कही

उदास थे जो गुंचे चमन में  फिर  उठा  लिया  है  सर
क़ुछ खुशबू के साथ खिल उठे जब उसने गजल कही

ख्वाबों की दुनिया में था  और  नींद  की  आगोश  में
फिर रोम  रोम  जाग  उठा  जब  उसने   गजल  कही

बहकाया  फुसलाया  बहुत   नुकताचीनों    ने    मुझे
उस पर लगे दाग  झूठे  मिले  जब उसने  गजल कही

पत्थर का टुकड़ा  हंस रहा  था   सोने की आगोश में
था उंगलियों  से झलक  रहा  जब  उसने गजल कही

@ बाबूराम प्रधान
नवयुग कॉलोनी, दिल्ली रोड,
बड़ौत ,(बागपत),उ . प्र . २५०६११

रविवार, 10 मार्च 2019

इश्क़


इश्क़ कितना कमाल करता है,
पल पल को हलाल करता है,
उठें नजरें तो उठी रह जाये,
ये कैसा जादू ज़माल करता है,
अर्श से हूर उतर आये ज़मी पे ,
दिल बार बार सवाल करता है,
चांदनी रात को दो दो माहताब ,
स्याह-ए-शब बड़ा मलाल करता है,
जब उनके लिए दिल में जा नहीं,
फिर क्यों दर पे बवाल करता है।
अर्श- आसमान, स्याह-ए-शब - अँधेरी रात  जा- जग़ह
@बाबूराम प्रधान
नवयुग कॉलोनी ,
दिल्ली रोड़ , बड़ौत (बागपत)
पिन - 250611

शनिवार, 2 मार्च 2019

बाग का माली

उगते पादप तोड़ने को  
     दुष्ट जन सब ताक बैठे
बाग का माली बेचारा 
      बाग के किस ओर देखे।

बाग के पादपों कि हालत 
      झुलसी कुम्भलाई ये कैसी
रात -दिन माली बेचारा 
       बेचैन मन उदास कल्पना। 

कौन कैसे इस दशा को 
        ठीक करके पथ दिखाये
सोच चिन्ता की लकीरें
        माथे हैं आती हर पल तुम्हारे

राह लगती ये सही है 
        या है दूजी कोई बताये
हर तरफ के कंटकों को
         मैं मिटाऊँ भी तो कैसे। 

शूल को दूर करते -करते 
      रक्तरंजित मन है मेरा
क्यों उपेक्षित है ये दर्पण 
        कोई समझाये बताये। 

एक गुलशन पहले भी तो 
        यूँ ही पाया था कभी
बाग के उन पाइपों को
        तप से सींचा था कभी। 

आज क्यों फिर देव ने 
         दिया मौका वैसा तुझे 
कोई नव उद्देश्य होगा  
         बाग महकाना तुझे। 

खूबसूरत गुलशन कि कल्पन 
            गुनाह मेरा तो ही अच्छा 
बाग कुम्भलाने न दूँगी
           संकल्प शशि इच्छा ये मेरी

शशि कण्डवाल 
अध्यापिका 
कर्णप्रयाग चमोली 
उत्तराखंड