किसी के तो दिल में रहूँगी,
माना कि नज़र में नहीं रहूँगी।
यह न हुआ तो दिमाग में रहूँगी,
मुझे यक़ी है मैं बेघर नहीं रहूँगी।
चार दिन उदासी के निकल जाएंगे
पता है, उदास मैं उम्र भर नहीं रहूँगी।
उन्हें ज़िद है यह गुलशन सुखाने की,
मगर मैं तो बहार हूँ, बंजर नहीं रहूँगी।
प्यार, मुहब्बत-इबादत, शब्द तो नहीं,
ख्यालों में उनके मुख़्तसर नहीं रहूँगी।
शिकायतें बहुत हैं उन्हें यूँ तो मुझसे,
कल तड़पेंगे जिस पहर मैं नहीं रहूँगी।
फक्कड़ हूँ, मुझे याद करेगी दुनिया,
माना कल इस सफ़र में नहीं रहूँगी।....शैलपुत्री
खूबसूरत रचना
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत धन्यवाद नन्दन राणा जी।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंउन्हें जिद है उजाड़ने की गुलशन यह
मगर मैं तो बहार हूँ बंजर नहीं रहूंगी
बहुत खूबसूरत लिखा मजबूती के साथ जीवन की जद्दोजहद को परे धकेलते हुए अपनी मंजिल की ओर बढ़ते रहने का हौसला लिए हुए बहुत बहुत बधाई
हार्दिक आभार, आदरणीय बाबूराम जी।
हटाएंवजूद की गवाही के लिए सुंदर सुकोमल अभिव्यक्ति बहिन कविता जी दिली बधाई।
जवाब देंहटाएंआदरणीया, सुनीता शर्मा दीदी जी हार्दिक आभार।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार आदरणीया डॉ जेन्नी जी।
हटाएंGreat Kavita.... Amazing.
जवाब देंहटाएंहार्दिक आदरणीय, प्रदीप जी।
हटाएंकविता जी ,
जवाब देंहटाएंतुम कविता का सागर हो ,
उर्दू हो या हिन्दी ,
दोनों में करती हो कमाल ,दर्द बांटती हो नज्मों से बे मिसाल |जिन्हें पढकर पढने वाले भी हो जाते हैं बेहाल || अति सुंदर - श्याम हिंदी चेतना
आदरणीय श्रीमान त्रिपाठी जी आपका हार्दिक आभार एवं नमन आपको
हटाएंबहुत सुंदर! हार्दिक बधाई कविता जी!
जवाब देंहटाएं~सादर
अनिता ललित
अनीता जी आपका हार्दिक आभार
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूबसूरत रचना कविता जी !
जवाब देंहटाएंSunder rachna
जवाब देंहटाएंशानदार रचना
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