अनिता काला
सहायक अध्यापिका
रा.प्रा.वि.जंटाई (बचणस्यूं)
1_निर्जन वन है,राह कठिन है।
कैसे कटेगें, दिन रैना
कैसे जन्म दूँगी, जातक को
मन को नहीं, मिलता चैना।
2-कैसे जिऊँगी, नहीं सहारा
आज बनी, अबला नारी।
सब कुछ है पर, रूठी किस्मत
रूठ गयी, दुनिया सारी।
3-लाड़ली थी, मिथिला की कभी में
थी कौशल की, महारानी।
आज हुई, परित्यक्ता जग में
बहता आँखो, से पानी।
4-मन कर्म वचन से, पतिव्रता थी
फिर भी अग्नि, परीक्षा दी।
मेरे सतित्व को, लेकर जग ने
कितनी गन्दी, गाली दी।
5-कितनी रात, अँधेरी है ये
कितना भयानक, ये पल है।
प्यार से मुझको, वन में भेजा
कितना दर्द, भरा छल है।
6-जाऊँ कहाँ में, समझ न आये
हे! वसुधा अब, राह दिखा ।
तुझसे जन्मी, में भूमिजा
कैसे जिऊँ, माँ मुझे बता।
7-हे! विधना ये कैसी ,मिली वेदना
बिना जुर्म की, मिली सजा।
कैसी फूटी, पायी
कैसी है ये, तेरी रजा।
8-इस वन में मेरा, कोई न अपना
कहीं न अपना, ठिकाना है।
अब तो मृत्यु ही, एक सहारा
उसको ही गले, लगाना है।
9-सुनकर सिय की, करुण वेदना
बाल्मीकि जी, दौड़े आये।
चरण छुए, सीता ने गुरु के
पुत्रवती का, वर पाये।
10-रुक जा पुत्री, हिम्मत बाँधो
तुम तो जनक, दुलारी हो।
इक्ष्याकुं वंश की, संतति गर्भ में
तुम श्रीराम की, प्यारी हो।
11-ये तो लेख, विधाता का था
तुम दोनों जो, अलग हुए।
रामायण का, एक प्रसंग ये
भाग्य नें जो ये, दर्द दिए।
12-आज से में तेरा, पिता तुल्य हूँ
मेरी कुटिया, तेरा घर है।
आश्रम वासी, भाई-बहन सब
पुत्री ये तेरा, पीहर है ।
13-बाल्मीकि आश्रम में, मिला सहारा
घर सा प्यार, दुलार मिला ।
चूल्हा चौका, लकड़ी काटे
जीनें का, आधार मिला।
14-ऋषि बालाओं के, साथ में सीता
होती है मन ही, मन खुश।
घड़ी सुख की, फिर लौट कर आई
सीता के जन्मे, लव और कुश।
15-किलकारियों से, आश्रम गूँजा
सीता को खुशियाँ, अपार मिली।
पुत्रों ने शिक्षा, दिक्षा पायी
ज्ञान की ज्योति, अखण्ड जली।
16-राम ने यज्ञ का, घोड़ा छोड़ा
जिसको लव कुश, ने पकड़ा ।
नहीं लोटाएगें, इस घोड़े को
दोनों पक्षो में, हुआ झगड़ा।
17-अंत में श्री राम जी, लड़ने आये
पिता पुत्र में, युद्व हुआ।
गुरु संग सीता, भाग के आई
हाय रे!कैसा ये, अनर्थ हुआ।
18-लव कुश से फिर, सीता बोली
ये ही पिता, तुम्हारें हैं।
पुत्रों इनके, चरण छुवों तुम
ये सारे जग से, प्यारे हैं।
19-राम को लव कुश, सौप कर बोली
ये दो लाल, तुम्हारे हैं।
प्यार से, पालन पोषण करना
ये मेरे, आँख के तारे हैं।
20-स्वीकार करो, प्रणाम नाथ अब
अंतिम आज, जीवन मेरा।
हे! धरती माँ, मुझे समा लो
कार्य हुआ, पूरा मेरा।
नीलाम्बरा पर सुन्दर रचना के साथ पहली बार प्रकाशित होने हेतु हार्दिक बधाई अनिता जी।
जवाब देंहटाएंसुंदर सृजन के लिए अनिता जी को बधाइयाँ
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना बधाई अनिता काला जी
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत बधाई हो अनिता जी
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंअनिता जी आपकी "सीता परित्याग " रचना पढकर मुझे बहुत सी नारी जाति सम्बन्धी अनेकों ऐसे चित्र सामने आ गये | अहिल्या , उर्मिला , शकुन्तला और यशोधरा ऐसे ही अनेकों उदाहरण हैं | जिनके साथ न्याय नहीं हुआ | आप एक स्त्री हैं और आप नारी के दुःख को बहुत गम्भीरता से समझती हैं | देवी सीता जी के चित्रण में आपने अपनी कलम तोड़ दी | इसे पढकर पाषाण भी पिघल जायेंगे | बहुत ही मार्मिक और प्रभावपूर्ण चित्रं है | मेरी ओर से ढेर सारी बधाई ! श्याम त्रिपाठी हिन्दी चेतना
जवाब देंहटाएंसभी को प्रणाम एवं हार्दिक आभार।
जवाब देंहटाएंBuwa Ji Apko Bahut Bahut subkamnaye hmari taraf se
जवाब देंहटाएंसराहनीय रचना
जवाब देंहटाएंनारी के त्याग और वेदना को बहुत ही मार्मिक ढंग से अभिव्यक्त किया है आपने मैम।
जवाब देंहटाएंहार्दिक शुभकामनाएँ।
हार्दिक आभार
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