लफ्ज़ लफ्ज सुना गौर से जब उसने गजल कही
अतीत आंखों से होके गुजरा जब उसने गजल कही
उदास थे जो गुंचे चमन में फिर उठा लिया है सर
क़ुछ खुशबू के साथ खिल उठे जब उसने गजल कही
ख्वाबों की दुनिया में था और नींद की आगोश में
फिर रोम रोम जाग उठा जब उसने गजल कही
बहकाया फुसलाया बहुत नुकताचीनों ने मुझे
उस पर लगे दाग झूठे मिले जब उसने गजल कही
पत्थर का टुकड़ा हंस रहा था सोने की आगोश में
था उंगलियों से झलक रहा जब उसने गजल कही
@ बाबूराम प्रधान
नवयुग कॉलोनी, दिल्ली रोड,
बड़ौत ,(बागपत),उ . प्र . २५०६११
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
हटाएंबहुत बहुत धन्यवाद आपका
हटाएंसुन्दर रचना, हार्दिक बधाई।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद डॉ कविता भट्ट जी
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना, बाबूराम जी को बधाई.
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद डॉ जेन्नी शबनम जी आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए प्रेरणादायी होगी
हटाएंबहुत बहुत धन्यवाद डॉ सुषमा गुप्ता जी आपका उत्साहवर्धन के लिए
जवाब देंहटाएंBahut hi since rchna badhai
जवाब देंहटाएंपत्थर का टुकड़ा हंस रहा था सोने की आगोश में
जवाब देंहटाएंक्या यथार्थ परोसा गया है बधाई रचनाकार को नमन कलम को