मीनू जोशी (अल्मोड़ा, उत्तराखण्ड)
1-सुनो ! कविता कुछ कहती है.....
सुनो कविता कुछ कहती है,
कहती है,
संवेदनहीन अलगाव के बीच,
झूलती, सिसकती आहें।
भावनाओं का उफ़ान रोकती,
हृदय बेधित कराहें।
आपसी मनभेदों के बीच,
अपने वज़ूद को तलाशती,
बहुत दूर निकल आई हूं....
मैं बौद्धिक विलास में नहीं
हृदय की तरलता में हूं।
गौर से सुनो,
शायद यही कहती है।
कहती है,
यहां अंतर्द्वंद्व का रेगिस्तान,
स्याह रातों का सूनापन,
दूर तक सिमटी ख़ामोशी।
अनवरत प्रतीक्षा के बीच,
एक उम्मीद की किरण,
कि शब्द- शब्द बुनकर,
बूंद-बूंद नैनों से पिघल कर,
एक लंबी प्रसव पीड़ा के बाद,
कोई धीरे से कहेगा -
सुनो, पैदा हुई है
सचमुच एक कविता ।
-0-
2-घाव
युद्ध लड़े जाते हैं,
मिसाइल और टैंकों से,
पर युद्ध गढ़े जाते हैं,
अहम, विद्वेष और आवेगों से।
सत्ता में बैठे लोग,
मशीनी बम होते हैं,
उन्हें फटना होता है,
उन रिहायशी इलाकों पर,
जहां -
पल रही थी अब तक,
प्रेम सौहार्द और सहानुभूति।
फैलाना होता है,
अपने वर्चस्व का धुआं
और साम्राज्यवाद की गंध।
जो क्रूर अट्टहास के साथ।
लील लेता है -
करोड़ों जिंदगियों को एक साथ।
उनके अपनों की,
मिट जाती है जिजीविषा।
रह जाते हैं -
सिर्फ अवशेष,
मृतप्राय आहत मानव,
असीम पीड़ा और
कभी न भरने वाले घाव !
-0-
उत्कृष्ट रचना।
जवाब देंहटाएंहार्दिक बधाई आदरणीया।
सादर🙏
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना शुक्रवार ११ मार्च २०२२ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
वाह, मर्मस्पर्शी। उत्कृष्ट सृजन।
जवाब देंहटाएंसुंदर एवं श्रेष्ठ 🙏🙏
जवाब देंहटाएंवाह शानदार रचनाएं 👌👌👌🙏
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर!
जवाब देंहटाएंसत्ता में बैठे लोग,
जवाब देंहटाएंमशीनी बम होते हैं,
उन्हें फटना होता है,
उन रिहायशी इलाकों पर,
जहां -
पल रही थी अब तक,
प्रेम सौहार्द और सहानुभूति।
सटीक एवं उत्कृष्ट...
दोनों रचनाएं बहुत ही सुन्दर एवं सार्थक हैं
लाजवाब।
दोनों रचनाएँ बहुत सुंदर और प्रभावपूर्ण।
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