प्रश्न- बीना
जोशी हर्षिता
महामारी,लॉकडाउन
और
ऑनलाइन मुलाकातों के सिलसिले!
स्नेह का स्रोत-सा,
मन के धरातल पर
अकस्मात्
प्रस्फुटित होता है
और प्रेम की नन्ही- सी धार
निकलकर धीरे- धीरे बढ़ते हुए
एक विशाल नदी का
आकार ले लेती है।
हम दोनों के बीच
बहने वाली यह प्रेम-नदी
दो शहरों के तटबंधों को तोड़कर
सुदूर तुम्हारे घर तक जा पहुँचती है
और धकियाते
हुए
सभी रक्त-संबंधों
परिचितों एवं मित्रों को
तुम्हें अपने ही
आगोश में डुबो लेती है।
अपनेपन के मोह में उलझा
यह कोई पुराना नाता है,
या इसी जन्म
का रिश्ता?
मेरी
जिज्ञासा अकसर
मुझसे
प्रश्न करती है।
-0-6/12/2021
प्रेम की अभिभूत करने वाली कविता, गहन आत्मीयता से सराबोर। हार्दिक बधाई बीना जोशी हर्षिता जी
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार
हटाएंबेहतरीन कविता, हार्दिक शुभकामनाएँ ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
जवाब देंहटाएंप्रेम की अनुभूति की गहन व्यंजना।सुंदर कविता हेतु बीना जोशी'हर्षिता'जी को बहुत बहुत बधाई।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर अभिव्यक्ति!
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंसुंदर कविता हार्दिक बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर कविता।हार्दिक बधाई।
जवाब देंहटाएंbahut sundar
जवाब देंहटाएंबहुत प्यारी रचना.हार्दिक बधाई.
जवाब देंहटाएंप्रेम की प्यारी अभिव्यक्ति है | हार्दिक बधाई |
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 12 दिसम्बर 2021 को साझा की गयी है....
जवाब देंहटाएंपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जहाँ तक मुझे लगता है कि अपने जीवन में हैम जिससे भी मिलते हैं उससे कोई न कोई पुराना नाता होता है ।
जवाब देंहटाएंसुंदर अभिव्यक्ति ।।
नेह स्नेह की सुंदर अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंदूर पास का अंतर नहीं पड़ता बस अभिव्यक्त करना जरूरी है।
वाह! बहुत ही शानदार
जवाब देंहटाएंअपनेपन के मोह में उलझा
जवाब देंहटाएंयह कोई पुराना नाता है,
या इसी जन्म का रिश्ता?
मेरी जिज्ञासा अकसर
मुझसे प्रश्न करती है।/////
इस प्रश्न का अनुत्तरित रह जाना ही जीवन का असीम आनंद है | अपनत्व की परिभाषा तलाशती भावपूर्ण रचना | हार्दिक शुभकामनाएं शैल जी |
सुन्दर रचना के लिए मेरी बधाई
जवाब देंहटाएंबढ़िया रचना ... हार्दिक बधाबीना जी।
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