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सोमवार, 6 दिसंबर 2021

297-मन अभिमन्यु

 डॉ.कविता भट्ट 'शैलपुत्री'




मन अभिमन्यु

 

आश्वासन दे कामनाओं को,

मैंने चिरनिद्रा में सुला दिया।

 

सौ - सौ बार हुआ जीवन रण,

मन अभिमन्यु सा सदा रहा।

 

बार - बार मृत मन को नोंचा,

स्वजन ने प्रहार भला किया।

 

भावनाओं की अर्थी निकली,

संवेदनाओं को जला दिया।

 

विज्ञ अर्थहीन सम्बन्धों से थी,

फिर भी आमंत्रण खुला दिया।

 

परिपथ धैर्य ने साथ न छोड़ा,

रंगमंच पटल - संग खड़ा रहा।

 

निज साहस ने सिंगार किया

ये दीपक आँधी में जला रहा।

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