डॉ.कविता भट्ट 'शैलपुत्री'
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बिछड़ा साथी
क्या
कभी नदिया का एक किनारा
दूसरे
किनारे से जा मिला है?
बंजर
-सूखे- कँटीले रेगिस्तान में
आशा
का कोई फूल खिला है?
आम
की कुसुमित डाली से
सुरभित
मधुवन हुआ है?
ज़हर उगलती विषकन्या को
प्यार
से किसी ने छुआ है?
क्या
कभी मानव-देह का परिचय
समक्ष
ईश्वर के हुआ है?
जीतकर
भी सब हारे यहाँ पर
ज़िन्दगी तो एक जुआ है?
क्या
कभी चाँदनी रात में
तारों
का कोई सिलसिला है?
खण्डहर
फिर से बसा और
बिछड़ा
साथी फिर से मिला है?
सुन्दर,भावुक कविता।
जवाब देंहटाएं“ज़िंदगी तो एक जुआ है।" सत्य कथन।
सच बयां करती भावपूर्ण रचना ...
जवाब देंहटाएंकविता जी हार्दिक बधाई
बहुत सुंदर भावपूर्ण रचना...हार्दिक बधाई।
जवाब देंहटाएंसुंदर कविता।हार्दिक बधाई....।
जवाब देंहटाएंसुंदर भावयुक्त रचना
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