डॉ. कविता भट्ट 'शैलपुत्री'
राजमार्ग को लगा
मैं गाँव के कपोलों पर लिख
सकता हूँ
अनंत जीवन, प्रसन्नता और सपने
गाँव की मुस्कान को
मैं ऐतिहासिक गीत में परिवर्तित
कर दूँगा
स्वर लहरियाँ गूँजेगी
मंदिर की घंटियाँ
घोलेंगी मधुमिश्रित शांति
खेतों में लहलहाएँगी
धान, सरसों, कोदू, कौणी
पंचायती चौंतरे पर हुक्के
गुड़गुड़ाएँगे
पशुकुल की गलघंटियाँ खनकेंगी
थड़िया, चौंफलें और मंडाण
घोलेंगे वातावरण में जीवंतता
मदमाती बालाएँ खिलखिलाती
गाँव में विचरण करेंगी
साड़ियों के पल्लू लहराते
हुए।
छुटके खेलेंगे पिट्ठू - राज
- पाट - गारे
जाने क्या - क्या और भी
पंचायती विद्यालय में
पहाड़े रटने के स्वर
गूँजेंगे गगनभेदी नारे
स्वतंत्रता दिवस पर-
“भारत माता की जय”
गणतंत्र दिवस होगा
विशेष लड्डुओं के डिब्बों
से मीठा
रंग- बिरंगे सपने लिये
राजमार्ग बढ़ा गाँव की ओर
लेकिन यह क्या
उसके पहुँचने से पहले ही
गाँव अंतिम साँसें गिन रहा
था
उसकी बूढ़ी हड्डियाँ मरणासन्न
थी
खटिया पर खाँसते हुए गाँव पूछता है
अब आए हो, जब मेरा यौवन हो चुका विदा
अब नहीं बचूँगा, कितना भी औषध करो
किंतु फिर भी
राजमार्ग ने आँखों की चमक
नहीं खोई
बोला, “सच करूँगा तुम्हारे सपने
क्योंकि मुझे बताया गया है
और सच है
'भारतमाता ग्रामवासिनी!'
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बहुत भावपूर्ण कविता।
जवाब देंहटाएंहार्दिक बधाई आदरणीया दीदी को इस सुन्दर सृजन के लिए। 💐🌹
सादर
अद्भुत एवं मार्मिक कविता, राजमार्ग गाँव की ओर बढ़ अवश्य रहे है पर वे अपना ही विस्तार कर रहे है, गाँव अपनी पहचान खो रहे है, राजमार्ग की आँखों की चमक आशा की किरणे जगाती है. बधाई कविता जी।
जवाब देंहटाएंगाॅंवों की भावनाओं को अभिव्यक्त करना बड़ी चुनौती है , बहुत सुंदर ढंग से आपने अभिव्यक्त किया, हार्दिक शुभकामनाऍं।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर शब्दों में गाँव की भावनाओं को चित्रित किया है डा.कविता भट्ट जी ने।हार्दिक बधाई।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर यादों का यह झरोखा। हार्दिक बधाई
जवाब देंहटाएं- गाँव को छोड़ के हम शहर कमाने आए
- अब ये एहसास हुआ जान गँवाने आए
गाँव और गाँव पर खतरे को पहचान कर उस संस्कृति को बचाने का भाव लिए इस कविता के लिए कविता जी को बधाई।
जवाब देंहटाएंअद्भुत एवं मार्मिक रचना ।
जवाब देंहटाएंहार्दिक बधाई आपको।
मन को द्रवित करने वाली कविता ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर कविता, गांव की आत्मा को महसूस करती हुई सटीक भाषा का प्रयोग, शब्दों का प्रयोग। गांव पर जो संकट मंडरा रहा है उसे हम सब देख रहे हैं परंतु कोई चारा नहीं है। उसका रूप बदल गया उसका रंग भी बदल गया निस्सहाय खड़ा है बस।
जवाब देंहटाएंआपको इस कविता के लिए साधुवाद।
हार्दिक बधाई
बहुत सुंदर और सराहनीय रचना। सच है, गाँव अब अंतिम साँसें ले रहा है। हर गाँव शहर में तब्दील हो रहा है। हार्दिक बधाई कविता जी।
जवाब देंहटाएंगाँव और राजमार्ग का बहुत सुंदर मानवीकरण। अति सुंदर भाव लिए उत्कृष्ट कविता। बधाई डॉ कविता💐
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर सार्थक सृजन
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया भावपूर्ण कविता...हार्दिक बधाई कविता जी।
जवाब देंहटाएंमार्मिक भाव लिए बहुत सुंदर कविता। एक आदर्श गांव का चित्रण सजीव हो उठा।आपको हार्दिक बधाई!
जवाब देंहटाएंबहुत भावप्रवण कविता । हार्दिक बधाई कविता जी ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और मर्मस्पर्शी कविता है, मेरी बधाई स्वीकार करें।
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