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सोमवार, 1 अप्रैल 2024

492-उसकी चुप्पी

 डॉ. कविता भट्ट 'शैलपुत्री'




उसकी चुप्पी- 

मेरे भीतर उतर आई हो 

कहीं जैसे; 

करने को आतुर हों 

अनन्त यात्रा 

मेरी आत्मा तक 

उसकी आँखें 

यों देख रही हैं 

एकटक मुझे 

भीतर से भीतर तक 

अभी तो स्पर्श भी न किया

 फिर ये कैसा जादू है!

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