डॉ.कविता भट्ट 'शैलपुत्री'
निज मन की गहन पीड़ाएँ
यदि शब्दों में समझा पाती
कहने में प्रतिकार न होता
तो सुंदरतम कविता होती।
पलकों के बंद कपाटों से
कुछ आशाएँ झलका पाती
रंगीन नहीं, श्वेत-श्याम सही
तो सुंदरतम कविता होती।
माना जीवन में अँधेरे थे
किंतु तब तुम नहीं मेरे थे
कुछ तेरे फेरे जो ले लेती
तो सुंदरतम कविता होती।
सपन-तंतु खिंचे टूट गए
क्या कुछ पीछे छूट गए
अधर धरकर सहला पाती
तो सुंदरतम कविता होती।
जब दरपन का मोह किए
सौंदर्य गात से विलग हुए।
संध्या जो उषा तक जाती
तो सुंदरतम कविता होती।
तेरे मन से मेरे मन तक
नदियाँ हैं, किंतु न सेतु बँधे
सेतु नहीं, नौका ही चलती
तो सुंदरतम कविता होती।
क्यों हैं रक्तिम छल्ले से
आँखों की भीगी
छत पर
यदि तुमको समझा सकते
तो सुंदरतम कविता होती।
अग्निशिखा- सी जलती है
सौ-सौ योजन चलती है
प्रीत शिला से न टकराती
तो सुंदरतम कविता होती।
संकल्प राग न गा पाए
सुहाग तेरे ना सजा पाए
सिंदूरी चूनर जो ओढ़ा देते
तो सुंदरतम कविता होती।
बहुत सुंदर कविता
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर कविता ।पीड़ा से सिक्त और भावों के औदात्त से परिपूर्ण । स्मृति शुक्ल
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण सृजन, हार्दिक बधाई
जवाब देंहटाएंसुंदरतम कविता
जवाब देंहटाएंसुंदर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंसुंदरतम कविता। बहुत-बहुत बधाई।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर कविता
जवाब देंहटाएंबधाई
बहुत ही सुन्दर, भावपूर्ण सृजन।
जवाब देंहटाएंआदरणीया दीदी को हार्दिक बधाई।
सादर
बहुत सुंदर भावपूर्ण रचना...हार्दिक बधाई।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत बहुत सुंदर, गहन भाव रखती हुई कविता है.... कविता Mam..... 🌹🌹🌹🌹🌹बहुत ही सुंदर वाह्ह्ह.....
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