डॉ.कविता भट्ट 'शैलपुत्री'
मेरी दादी ने सुहागन होते हुए भी कभी
माँग नहीं काढ़ी, न सिंदूर भरा; ना ही बिन्दी
लगाई। उन्हें सज-सँवरकर रहना पसन्द नहीं था; ऐसा बिल्कुल
नहीं था। मेरे दादाजी एक अक्षम व्यक्ति या वे ऐसा नहीं चाहते थे; ऐसा भी नहीं था। सच तो यह था कि मेरी दादी मजबूरी में माँग न भर सकी;
धीरे-धीरे उनके और गढ़वाल की टिहरी
रियासत की उनके ही जैसी राजशाही के अधीन रहने वाली अनेक महिलाओं की यह नियति बन गयी थी। इस प्रथा का नाम था
स्यूँदी-पाटी।
‘स्यूँद’ गढ़वाली भाषा में माँग
को कहा जाता है। स्यूँदी-पाटी प्रथा के अनुसार केवल रियासत की पटरानी ही माँग
काढ़ने, भरने और बिंदी लगाने, सजने-सँवरने
का अधिकार रखती थी। यह एक साधारण बात लग सकती है किसीको; क्योंकि
आजकल की महिलाएँ इसे प्रोग्रेसिव होने से जोड़ती हैं। उस समय ऐसा नहीं था; महिलाएँ माँग भरना पसंद भी करती थी और यह सुहागन होने का प्रतीक होने के
कारण शुभ माना जाता था। सुहागन स्त्रियाँ माँग भरने में हर्ष और सौभाग्य मानती थी।
माँग न भर सकना अशुभ माना जाता था और वैधव्य से जोड़ा जाता था; लेकिन तत्कालीन राजशाही का भय
ऐसा करने नहीं देता था। देण-खेण और न जाने कितनी ही ऐसी अनेक जनमानस का उत्पीड़न
करने वाली प्रथाएँ, कर और अत्याचार टिहरी रियासत की तत्कालीन
जनता ने झेले।
देण (राजा द्वारा जनता से अनाज
उगाही)-खेण (राजा द्वारा जनता से गुलामों के समान काम करवाना) और न जाने ऐसे कितने
कर राजा ने थोपे थे और बदले में जनता को मिलती थी
केवल पराधीनता और अथाह अत्याचार । भारतवर्ष 15 अगस्त, 1947 को ही अंग्रेजों से स्वतंत्र हो चुका
था; लेकिन टिहरी राजशाही के अमानवीय उत्पीड़नों का साक्षी
बनकर इतिहास के पन्नों पर खून के आँसुओं से अथाह पीड़ा की
कहानी लिख रहा था।
एक ऐसा व्यक्ति, जिसे राजा द्वारा अथाह पीड़ाएँ केवल इसलिए दी गई; क्योंकि उस व्यक्ति ने इन अत्याचारों के विरुद्ध
विद्रोह किया। राजा ने इन्हें लगभग 35 सेर (32.5 किलो ग्राम) की बेड़ियाँ पहनाकर
जेल में डाल दिया। सुमन ने 84 दिन तक भूख हड़ताल की। नई टिहरी जेल के एक कक्ष में
अभी भी ये बेड़ियाँ रखी हैं। बचपन में हम इन्हें देखने जाते थे; जब इन्हें सुमन के बलिदान दिवस पर सभी के लिए दर्शनार्थ रखा जाता था सुमन
की मूर्ति के साथ।
सुमन और कुछ अन्य अमर बलिदानी सपूतों के
विद्रोहों का ही परिणाम था कि कुछ समय बाद
टिहरी रियासत राजशाही से मुक्त हुआ। भिलंगना और भागीरथी के तट पर बसा हुआ टिहरी
शहर (जहाँ मेरा बचपन बीता)कई वर्ष पहले डूब चुका है; विकास के मानवनिर्मित जलाशय में (जिससे निर्मित विद्युत आज भारत के अनेक
राज्यों को जगमग कर रही है); ऐसे ही प्रकाशपुंज के समान यह
अमर बलिदानी स्वतंत्रता का जननायक श्रीदेव सुमन इतिहास के पन्नों में अमर हो गया। 25 जुलाई को श्रीदेव सुमन जी का बलिदान दिवस है। श्रीदेव तुम एक चिरसुरभित
सुमन की भाँति हमेशा महकते रहोगे हमारे मन-मस्तिष्क में। तुम्हें हम जैसे
कोटि-कोटि जन का कोटिशः नमन। सुमन जैसे ही
अनेक अमर देशभक्त जो इतिहास के पन्नों में कहीं गुम हो गए; किन्तु
देश को स्वतंत्र करवाने में जिन्होंने अपना लहू बहा दिया, उन
सभी के बलिदान से भारत का जन-जन कभी उऋण नहीं हो सकता।
जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी।
श्रीदेव सुमन को नमन...
जवाब देंहटाएंइतिहास के इन गुम हो चुके पन्नों को सामने लाने की जरूरत है।
आपने अच्छी जानकारी दी कविता जी... शुक्रिया
नमन
जवाब देंहटाएंअच्छी जानकारी देने के लिए आभार।
जवाब देंहटाएंश्रीदेव सुमन को नमन।
श्री देव सुमनजी को सश्रद्ध नमन🙏
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी जानकारी 👌👍👏
भावपूर्ण आलेख। स्यून्दी पाटी सुना तो था , किन्तु आप के इस आलेख से इस कुप्रथा को बेहतर समझ पाया। श्रीदेव सुमन जी ने क्रूर राजशाही और निरंकुशता का सदैव विरोध किया व जनमानस को न्याय दिलाने हेतु संघर्ष किया। इतने सरल शब्द, भावों से श्रीदेव सुमन पर यह आलेख हृदय छू गया। नमन।।
जवाब देंहटाएंअत्यंत भावपूर्ण । श्रीदेव सुमन को नमन है
जवाब देंहटाएंओह...
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