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गुरुवार, 5 अक्तूबर 2023

480

 

दीवार

प्रियंका गुप्ता 

 


लोगों को कहते सुना है-

दीवारों के भी कान होते हैं

मैं कहती हूँ

दीवारों की आँखें भी होती हैं

ज़ुबान भी

और कहीं किसी कोने में

धड़कता है - एक नन्हा सा दिल भी 

क्योंकि अगर ऐसा न होता,

तो क्यों

तुम्हारे जाने के बाद

सबकी बतकहियों के बीच भी

इतना सन्नाटा -सा होता ?

 


क्यों कहीं किसी कोने में

मेरे आँसुओं के समांतर

नम- सी दिखती दीवार

ऐसा क्यों होता माँ

कि

कभी लड़खड़ाने पर

झट सहारा देती मुझे

फिर कोई दीवार

ठीक तुम्हारी तरह

क्यों सुनाई देती है कोई सिसकी- सी

रात के सन्नाटे में?

क्या सच में ऐसा है

या फिर कोई वहम?

पता नहीं क्यों लगता है

तुम कहीं नहीं गई

बस छिपी हो इन्हीं किन्हीं 

दीवारों के पीछे

और एक दिन

जब सब काम करते-करते 

मैं बहुत थक जाऊँगी

तुम किसी दीवार के पीछे से

आवाज दोगी मुझे

पर तुम्हें पास बुलाने को

या फिर

तुमसे मिलने आने को

उन दीवारों के बीच

कोई दरवाज़ा मिलेगा क्या ?

-0-

 

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