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बुधवार, 31 मई 2023

456-आज ये मन/ आजु यू हिरदै

मूल: डॉ. कविता भट्ट 'शैलपुत्री'


 आजु  यू हिरदै /अवधी अनुवाद: रश्मि विभा त्रिपाठी

 

आजु ई आँखीं

टोहइ करिन बाटि तुम्हरी

पलकन का तोपि

बूड़इ करिन सपनन माँ तुम्हारइ

आजु हमरे ई कान

अहकि गे आरा तुम्हार श्रवनइ का

मीठ हाँसी मीठ बैना तुम्हरे श्रवनइ का


आजु हमरा ई चोला

छँउकान अस तलफि गा

परस तुम्हार लहइ का

आजु क्यार यू दिनु

सून कातिक कै लम्बी राति अस

ज्याठ कै गरमी अउर भदउँहाँ बरसाति अस

आजु यू हिय

तुम्हरे लाम ते भा बेकल केतना

तुम्हरे खातिर अहकिस केतना

चरका दइकै संघ छाँड़ि गा

अउर तुम्हरे सन हुइ गा।

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आज ये मन- डॉ. कविता भट्ट 'शैलपुत्री'

 

आज ये आँखें

देखती रही राह तुम्हारी

पलकें मूँदकर डूबी रही सपनों में तुम्हारे

आज मेरे ये कान

तरस गए आहट तुम्हारी सुनने को

मीठी हँसी मीठे बोल तुम्हारे सुनने को

आज मेरा ये तन

अतृप्त सा तड़प गया

स्पर्श तुम्हारा पाने को

आज का ये दिन

सूना-सूना कार्तिक की लम्बी रात सा

जेठ की गर्मी और भादों की बरसात सा

आज ये मन

हो गया कितना विकल दूरी से तुम्हारी

तरसा कितना खातिर तुम्हारी

धोखा देकर छोड़ गया मेरा साथ

और साथ तुम्हारे हो गया।

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6 टिप्‍पणियां:

  1. हृदयस्पर्शी कविता,सरस अनुवाद दोनो कवयित्रियों को बधाई।

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  2. बहुत ही मार्मिक ,हृदय स्पर्शी रचना अवधी का अनुवाद पढकर मेरी आँखें खुल गयीं | क्या मिठास है तुलसी की रामायण याद आ गयी |कविता जी रश्मी जी को मेरा नमन -श्याम त्रिपाठी हिन्दी चेतना

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  3. अनुपम रचना...कविता जी, रश्मि जी आप दोनों को हार्दिक बधाई।

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  4. भावपूर्ण, समर्पण भाव लिए बहुत सुंदर रचना। बधाई डॉ कविता

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  5. अनुपम रचना, बहुत बहुत बधाई आप दोनों को।

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  6. आप दोनों को इतनी प्यारी रचना और उसके अनुवाद के लिए बहुत बधाई

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