1-रमेशराज
नीलाम्बरा' का अमृतमंथन अंक अभिनन्दन-योग्य
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डॉ कविता भट्ट 'शैलपुत्री' एवं डॉ रत्ना वर्मा द्वारा संपादित व रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' तथा कृष्णा वर्मा के विशिष्ट वैचारिक विमर्श व सहयोग से प्रकाशित नीलाम्बरा का अमृतमंथन जुलाई-2022 अंक बेहद सारगर्भित और सार्थक इसलिए लगा क्योंकि यह एक ऐसा समय है, जिसमें छद्म देशभक्ति का उन्माद पूरे विश्व के स्तर पर मानवीय मूल्यों को तहस नहस करने पर तुला है। पूरे विश्व में राष्ट्रीय गौरव का छद्म मुखौटा लगाए पूंजीवाद का पिशाहच अब नए-नए तरीकों से भोली जनता को गुमराह कर उसका दोहन करने को आतुर है। उसने शोषण के नए-नए तरीके ईजाद कर लिए हैं।
इस
कुचक्र को विराम लगे। सर्वमंगल हो, इसके लिए ही क्रांतिवीर धरती पर
जन्म लेते आ रहे हैं। अंग्रेजों के शोषणकारी साम्राज्य को मिटाने के लिए जिन आज़ादी
के दीवानों ने भारतवर्ष में क्रांति की मशाल जलायी, अपने
प्राणों का उत्सर्ग किया, उनकी साहसिक गाथाओं पर नीलाम्बरा
का उक्त अंक फोकस ही नहीं डालता, सबसे बड़े अफसोस के साथ यह
सवाल भी करता है कि अब क्रांतिकारियों को क्यों बिसराया जा रहा है? इस बात को अपने एक दोहे के माध्यम से यूँ रखा जा सकता है-
यूँ
हम पर हाबी हुआ,
इस युग पूंजीवाद
अब
अच्छे लगते नहीं,
भगतसिंह, आज़ाद।
क्रांतिकारियों
का पावन स्मरण कराता यह अंक क्रांतिकारी भगवानदास माहौर, बटुकेश्वर
दत्त, तात्याटोपे आदि क्रांतिकारियों के अमूल्य संस्मरणों का
ऐतिहासिक दस्तावेज़ है। इसके अतिरिक्त समाज के विविध ज्वलंत विषयों/समस्याओं पर भी
विभिन्न आलेखों के माध्यम से पाठकमन पर गहरा प्रभाव छोड़ता है। लोकप्रिय लघुकथाओं
का गढ़वाली अनुवाद इस अंक को बेहद महत्वपूर्ण बनाता है। काव्य का पक्ष भी बड़े दक्ष
तरीके से संजोया गया है। अंक में मेरे बालगीतों को स्थान देने हेतु आभार। अंक की
जितनी तारीफ की जाए, कम।
*रमेशराज
सम्पादक-तेवरीपक्ष, अलीगढ़
कई
दिन से बीमार चल रहा था,
इसी कारण नीलाम्बरा के अमृतमंथन अंक पर टिप्पणी न दे सका। आज
उपरोक्त टिप्पणी डाल दी है।कविताओं को स्थान देने हेतु आपका शतशत आभार।
सादर
रमेशराज
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2-रघुवीर शर्मा
लोकप्रिय वैश्विक पत्रिका “नीलाम्बरा” जुलाई 2022 का अमृत-मंथन अंक विविध वर्णी साहित्यिक रचनाओं से संपन्न है। परामर्शदाता आदरणीय रामेश्वर
काम्बोज “हिमांशु” जी, संपादक डॉ कविता भट्ट “शैलपुत्री” जी तथा पत्रिका परिवार का श्रम स्तुति योग्य है. पत्रिका का संपादकीय “स्वतंत्र राष्ट्र और कर्तव्य परायणता” समसामयिक और पठनीय है। “धरोहर”स्तंभ में हमारी साहित्यिक धरोहर, जयशंकर प्रसाद, मैथिलीशरण गुप्त, माखनलाल चतुर्वेदी और रामनरेश त्रिपाठी जी की राष्ट्रीय रचनाओं की उपस्थिति अमृत महोत्सव काल में चिंतन के स्तर पर मन को सुख दे रही हैं। “नीव की ईट”स्तंभ में शहीद भगत सिंह के साथी बटुकेश्वर दत्त पर आलेख, चंद्रधर शर्मा गुलेरी के साहित्य में राष्ट्र चिंतन जैसे कई सम सामयिक आलेख चिंतन को नई दिशा देते हैं। कहानियां,यात्रा संस्मरण, डायरी और काव्य-वीथी स्तंभ भी उत्कृष्ट और आकर्षक हैं।
मेरे तीन गीतों को भी इस अंक में स्थान देने
के लिए पत्रिका “नीलाम्बरा” परिवार का आत्मीय आभार.
रघुवीर शर्मा
खंड़वा म.प्र.
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