डॉ.कविता भट्ट 'शैलपुत्री'
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सोमवार, 21 फ़रवरी 2022
रविवार, 20 फ़रवरी 2022
332-नई कविताएँ
1-क्षणिकाएँ - केशव शरण
1
ढेले पड़ेंगे
मेरा प्यार है
आम के फल जैसा
पत्तों में छुपा
ढेले पड़ेंगे
ज़ाहिर होते ही
2
दिक़्क़त
मैं उसके लायक़ नहीं हूँ
लेकिन मेरे लायक़
वही है
दिक़्क़त यही है
3
धन्यता
सौ में
दो ने सुनी
कू-कू
धन्य हुई कोयल
4
विक्षिप्त वियोगी की वाणी
जब तक वाणी
बंद न हुई
कहता रहा
विक्षिप्त वियोगी
कब आओगी
मेरी राणी !
5
उमस में हवा
इस उमस में
पत्ता तो रहा
डोलने से
कुछ हवा महसूस हुई
कोयल के बोलने से
6
उम्मीद
उम्मीद
एक टिमटिमाहट
तारों की
इसी के सहारे
रात कटती
अँधेरी
7
चीख़
गड़ा था तो
इतना नहीं चीख़ा था
जितना चीख़ रहा है
जब निकाला जा रहा है काँटा
8
रूप परिवर्तन
ये जो नग़मा है
दर्द-भरा
सुरीला
एक समय
सदमा था
गहरा
9
जुड़े रहें नेत्र
मिट्टी, पानी,
धूप, हवा से
जुड़े रहें नेत्र
जिनके रस लेकर
चहचहा उठे हृदय-क्षेत्र
हरियाली से भर
-0-एस 2/564 सिकरौल ,वाराणसी 221002
keshavsharan564@gmail.com>
-0-
2- आ
गया शुभ वसंत
श्याम सुन्दर श्रीवास्तव 'कोमल'
खेत हैं हरे-भरे धान लहलहा रहे
छेड़ रागिनी मधुर विहग चहचहा रहे
डोलती है डाल-डाल बह रही हवा सुमंद
खिल गए कली सुमन झर उठा मकरन्द
जी उठे पशु विहग शीत का हुआ है अंत ।
अलि कहे सुनो कली आ गया शुभ वसंत ।।
फूल के मृदुल अंग छेड़ती हवा चली
अंग-अंग पा स्पर्श खिल उठी कली-कली
फैलती सुगन्ध मंद वायु डोलने लगी
हँस रही कुसुम कली पाँख खोलने लगी
मधु स्वरों में गल्प अलि कह रहे मन गढ़ंत ।
अलि कहे सुनो कली आ गया शुभ वसंत ।।
अंग-अंग नव उमंग गात झूमने लगे
तरु लताओं से लिपट पात चूमने लगे
पिक मधुर नवगीत के छेड़ती है अन्तरे
एक नव उल्लास व्याप्त सांस में सौरभ भरे
शीत और ऊष्म की बीच में हुई भिड़ंत ।
अलि कहे सुनो कली आ गया शुभ वसंत ।।
-0-
3-नींद से अब तौ जागौ
बुन्देली कुण्डलियाँ-
श्याम सुन्दर श्रीवास्तव 'कोमल'
1
जागौ अब तो मूड़़ पै, चढ़ आओ है घाम ।
अभउँ परै तुम सो रयै, उठौ करौ कछु काम।
उठौ करौ कछु काम, धाम तुम नेक सम्हारौ।
बिगर गऔ जो काम, और ना बाय बिगारौ।
कह 'कोमल'
कविराय, करम से तुम ना भागौ।
पर्यावरण बचाव, नींद से अब तौ जागौ।
2
भुनसारे से भास्कर, उजयारौ कर देत।
बदले में तुमसें कछू, बोलौ कभऊँ लेत।
बोलौ कभऊँ लेत, हवा बदले में तुमसें।
जबकी अपने प्रान, स्वांस सब ऑक्सीजन सें।
कह 'कोमल'
कविराय, अभउँ तुम चेतौ प्यारे।
पेड़ लगा कैं शुद्ध, हवा पाओ भुनसारे ।
3
धरती हमकौं देत है, फल,औषधियाँ,फूल।
रतन अन्न जल पा रये, फिरउ रहे हैं भूल ।
फिरउ रये हैं भूल, नेक ना सोच विचारैं ।
जिन पैं बैठे काट, रये हैं बेई
डारैं।
कह 'कोमल'
कविराय, दुखन खौं जो है हरती।
कनियाँ में लै खूब, खिलाबै माँ है धरती ।
-0- श्याम
सुन्दर श्रीवास्तव 'कोमल', व्याख्याता-हिन्दी, अशोक उ०मा०विद्यालय, लहार, जिला-भिण्ड (म०प्र०) ,
-0-
हरी घास लगती थी धरती का मखमल ।।
नहीं हैं निशाँ अब बचपन के बाकी ।
न वो बूढ़े बाबा है न वो बूढ़ी काकी ।।
हर एक रिश्ता कहाँ खो गया है ?
मेरा गाँव भी अब शहर हो गया है ।।
बचपन था खेला वो पीपल कहाँ है ?
वो आम के पेड़ की छाँव कहाँ है ?
मेरे झूले की टहनी काटी है किसने ?
घर-घर नफ़रतें बाँटी है किसने ?
यहाँ की हवा में ज़हर हो गया है ।
मेरा गाँव भी अब शहर हो गया है ।।
नदियाँ है प्यासी सुना है मधुबन ।
उजड़ सा गया है धरती का यौवन ।।
कितना विनाश है आया यहाँ पर ।
चहूँ ओर पतझड़ छाया यहाँ पर ।
प्रकृति से दूर मेरा घर हो गया है ।
मेरा गाँव भी अब शहर हो गया है ।।
न जिंदादिली है न खुशियों के मेले ।
हर एक गली में राजनीति के झमेले ।।
न वो बैठकें हैं न ही वो चौपालें ।
जहाँ पर इंसान सुकून थोड़ा पा ले ।।
यहाँ पर भी दंगों का डर हो गया है ।
मेरा गाँव भी अब शहर हो गया है ।।
-0-5/242, गुरुराजेंद्र कॉलोनी,राजगढ़, जिला
- धार, मध्यप्रदेश-पिन - 454116
E mail : kaviyash70@gmail.com
-0-
शनिवार, 19 फ़रवरी 2022
शुक्रवार, 18 फ़रवरी 2022
बुधवार, 16 फ़रवरी 2022
रविवार, 13 फ़रवरी 2022
शनिवार, 12 फ़रवरी 2022
रविवार, 6 फ़रवरी 2022
326 -मेरी लता
डॉ.कविता भट्ट 'शैलपुत्री'
मेरी माँ ने मुझे कई
बार बताया कि मेरा जन्म हमारे मिट्टी -पत्थर वाले गोबर से लीपे हुए पहाड़ी घर में
हुआ। मेरी माँ पुराने हिंदी फिल्मी गानों की बहुत शौकीन हैं और बहुत अच्छा गाती भी
हैं। उन दिनों शहर नगर गाँव -गाँव रेडियो
ही मनोरंजन का सर्वसुलभ साधन था। मेरे जन्म के समय रात को आकाशवाणी विविध भारती पर
कार्यक्रम छायागीत चल रहा था, गीत बज रहा था , 'शोखियों में घोला जाए , फूलों का शबाब ....' चित्रपट था ‘प्रेम पुजारी’ और
अमर स्वर सम्राज्ञी लता जी तथा अविस्मरणीय किशोर दा ने अपने सुरों से झंकृत किया
था। गीतकार ‘नीरज’ के शब्दों को अपनी विशारद ध्वनि से झंकृत कर आत्मा तक पहुँचाने वाली लता दीदी का पूरे संगीत जगत के साथ ही जनसामान्य के मानस पटल पर
एक छत्र आधिपत्य था।
मेरा जन्म वर्ष 1979 वसंत ऋतु में हुआ;
उल्लेखनीय है कि प्रेम पुजारी फिल्म 1970 में
रिलीज हुई थी, लेकिन इस फ़िल्म के गीत हवाओं में गुंजायमान थे
और सदियों तक रहेंगे।
लता जी पर कुछ भी लिखना
दुस्साहस है। उनकी आत्म तरंगित ध्वनि ने गीतों के माध्यम से मुझ जैसे कोटि- कोटि लोगों को दुःख
में सम्बल और सुख में उमंग दी। लता जी आपका स्थूल शरीर तो आज प्रकृति में विलीन हो
गया; किंतु सूक्ष्म रूप से आप सदियों तक करोड़ों हृदयों के
सिंहासन पर विराजमान रहेंगी।
लता जी आपने हमारी
प्रत्येक संवेदना और भाव को आवाज दी। हमें जीवन दिया।
आपके गीतों के
संग्रह मैंने उस समय से रिकॉर्डिंग करवा कर रखे, जब मैं 500 रुपये मात्र की नौकरी करती थी और एक कैसेट की
रिकॉर्डिंग रु 250 तक में होती थी। उन गीतों की रिकॉर्डिंग
पर होने वाले खर्च मेरे अपने पैसे से ही होते थे; लेकिन फिर
भी घरवालों के ताने मिलते थे। लेकिन जिद्द थी आपके गाने अपनी पसंद से टेप रिकॉर्डर
पर सुनने की, तो ताने एक तरफ रख दिए। जब पेनड्राइव का ज़माना आया तो वे सब सैकड़ों कैसेट अप्रासंगिक हो गए। गाना सुनने का माध्यम
बदल गया, लेकिन आवाज वही रही जिससे आह निकल जाए ऐसी लता।
एक बार किसी बस में
मेरी पसंद का गाना बज रहा था, केवल 5 किमी की यात्रा
अतिरिक्त की, ताकि वह गाना पूरा सुन सकूँ।
हजारों संस्मरण हैं
ऐसे।
अए मेरे वतन के लोगो ! गीत तो प्रत्येक देशप्रेमी की आवाज़ बन गया और आज का दिन
देखिए-प्रदीप जी की जयन्ती भी है आज!
आप अंतिम साँस तक
गुनगुनाई जाएँगी।
वस्तुतः लता एक युग का नाम है- सदियों तक अविस्मृत !
श्रद्धावनत अश्रुपूरित
सुमन लता जी!
शुक्रवार, 4 फ़रवरी 2022
325-मेरी कुछ रचनाएँ
डॉ.कविता भट्ट 'शैलपुत्री'
वर्ष 2018 की कुछ रचनाएँ .। कृपया नीचे दिए हुए नीले लिन्क को क्लिक कीजिएगा-
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