1-क्षणिकाएँ - केशव शरण
1
ढेले पड़ेंगे
मेरा प्यार है
आम के फल जैसा
पत्तों में छुपा
ढेले पड़ेंगे
ज़ाहिर होते ही
2
दिक़्क़त
मैं उसके लायक़ नहीं हूँ
लेकिन मेरे लायक़
वही है
दिक़्क़त यही है
3
धन्यता
सौ में
दो ने सुनी
कू-कू
धन्य हुई कोयल
4
विक्षिप्त वियोगी की वाणी
जब तक वाणी
बंद न हुई
कहता रहा
विक्षिप्त वियोगी
कब आओगी
मेरी राणी !
5
उमस में हवा
इस उमस में
पत्ता तो रहा
डोलने से
कुछ हवा महसूस हुई
कोयल के बोलने से
6
उम्मीद
उम्मीद
एक टिमटिमाहट
तारों की
इसी के सहारे
रात कटती
अँधेरी
7
चीख़
गड़ा था तो
इतना नहीं चीख़ा था
जितना चीख़ रहा है
जब निकाला जा रहा है काँटा
8
रूप परिवर्तन
ये जो नग़मा है
दर्द-भरा
सुरीला
एक समय
सदमा था
गहरा
9
जुड़े रहें नेत्र
मिट्टी, पानी,
धूप, हवा से
जुड़े रहें नेत्र
जिनके रस लेकर
चहचहा उठे हृदय-क्षेत्र
हरियाली से भर
-0-एस 2/564 सिकरौल ,वाराणसी 221002
keshavsharan564@gmail.com>
-0-
2- आ
गया शुभ वसंत
श्याम सुन्दर श्रीवास्तव 'कोमल'
खेत हैं हरे-भरे धान लहलहा रहे
छेड़ रागिनी मधुर विहग चहचहा रहे
डोलती है डाल-डाल बह रही हवा सुमंद
खिल गए कली सुमन झर उठा मकरन्द
जी उठे पशु विहग शीत का हुआ है अंत ।
अलि कहे सुनो कली आ गया शुभ वसंत ।।
फूल के मृदुल अंग छेड़ती हवा चली
अंग-अंग पा स्पर्श खिल उठी कली-कली
फैलती सुगन्ध मंद वायु डोलने लगी
हँस रही कुसुम कली पाँख खोलने लगी
मधु स्वरों में गल्प अलि कह रहे मन गढ़ंत ।
अलि कहे सुनो कली आ गया शुभ वसंत ।।
अंग-अंग नव उमंग गात झूमने लगे
तरु लताओं से लिपट पात चूमने लगे
पिक मधुर नवगीत के छेड़ती है अन्तरे
एक नव उल्लास व्याप्त सांस में सौरभ भरे
शीत और ऊष्म की बीच में हुई भिड़ंत ।
अलि कहे सुनो कली आ गया शुभ वसंत ।।
-0-
3-नींद से अब तौ जागौ
बुन्देली कुण्डलियाँ-
श्याम सुन्दर श्रीवास्तव 'कोमल'
1
जागौ अब तो मूड़़ पै, चढ़ आओ है घाम ।
अभउँ परै तुम सो रयै, उठौ करौ कछु काम।
उठौ करौ कछु काम, धाम तुम नेक सम्हारौ।
बिगर गऔ जो काम, और ना बाय बिगारौ।
कह 'कोमल'
कविराय, करम से तुम ना भागौ।
पर्यावरण बचाव, नींद से अब तौ जागौ।
2
भुनसारे से भास्कर, उजयारौ कर देत।
बदले में तुमसें कछू, बोलौ कभऊँ लेत।
बोलौ कभऊँ लेत, हवा बदले में तुमसें।
जबकी अपने प्रान, स्वांस सब ऑक्सीजन सें।
कह 'कोमल'
कविराय, अभउँ तुम चेतौ प्यारे।
पेड़ लगा कैं शुद्ध, हवा पाओ भुनसारे ।
3
धरती हमकौं देत है, फल,औषधियाँ,फूल।
रतन अन्न जल पा रये, फिरउ रहे हैं भूल ।
फिरउ रये हैं भूल, नेक ना सोच विचारैं ।
जिन पैं बैठे काट, रये हैं बेई
डारैं।
कह 'कोमल'
कविराय, दुखन खौं जो है हरती।
कनियाँ में लै खूब, खिलाबै माँ है धरती ।
-0- श्याम
सुन्दर श्रीवास्तव 'कोमल', व्याख्याता-हिन्दी, अशोक उ०मा०विद्यालय, लहार, जिला-भिण्ड (म०प्र०) ,
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हरी घास लगती थी धरती का मखमल ।।
नहीं हैं निशाँ अब बचपन के बाकी ।
न वो बूढ़े बाबा है न वो बूढ़ी काकी ।।
हर एक रिश्ता कहाँ खो गया है ?
मेरा गाँव भी अब शहर हो गया है ।।
बचपन था खेला वो पीपल कहाँ है ?
वो आम के पेड़ की छाँव कहाँ है ?
मेरे झूले की टहनी काटी है किसने ?
घर-घर नफ़रतें बाँटी है किसने ?
यहाँ की हवा में ज़हर हो गया है ।
मेरा गाँव भी अब शहर हो गया है ।।
नदियाँ है प्यासी सुना है मधुबन ।
उजड़ सा गया है धरती का यौवन ।।
कितना विनाश है आया यहाँ पर ।
चहूँ ओर पतझड़ छाया यहाँ पर ।
प्रकृति से दूर मेरा घर हो गया है ।
मेरा गाँव भी अब शहर हो गया है ।।
न जिंदादिली है न खुशियों के मेले ।
हर एक गली में राजनीति के झमेले ।।
न वो बैठकें हैं न ही वो चौपालें ।
जहाँ पर इंसान सुकून थोड़ा पा ले ।।
यहाँ पर भी दंगों का डर हो गया है ।
मेरा गाँव भी अब शहर हो गया है ।।
-0-5/242, गुरुराजेंद्र कॉलोनी,राजगढ़, जिला
- धार, मध्यप्रदेश-पिन - 454116
E mail : kaviyash70@gmail.com
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बहुत सुन्दर क्षणिकाएँ, केशव शरण जी! हार्दिक शुभकामनाएँ ।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार !
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 22 फरवरी 2022 को साझा की गयी है....
जवाब देंहटाएंपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
बहुत सुंदर मनमोहक रचनाएँ। सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई।
जवाब देंहटाएंसुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंसुन्दर-सुन्दर रचनाओं से सजी
जवाब देंहटाएंगहन दर्शन
जवाब देंहटाएंअति सुंदर ।
जवाब देंहटाएंसभी रचनाएँ बहुत बेहतरीन हैं, आप दोनों को बहुत बधाई
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